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गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी वस्तुतः विवेकदृष्टिथी विचार करतां अवबोधाय छे के आत्मानुं दर्शन करवू अने आत्मानी शुद्धतानो प्रकाश करवो एज आगमोनो सार छे. आपणे कोण छीए अने आपणी शुद्धतानो केवी रीते प्रकाश करवो ते अवबोधवानी आवश्यकता छे. त्रणमण वा चारमणना शरीरमा रहेनार अने भूतकालनं स्मरण करनार आत्मा पोतानो छे अने ते शरीरने व्यापी रह्यो छे. आत्मानुं मूळ स्वरूप अने कर्मना योगे विकत स्वरूप अवलोकीने एमज विवेकदृष्टि दर्शावे छे के विभाविकरूप ते खरेखरूं आत्मानं रूप नथी. मोहना संबंधे विभावदशानं परिणमन थएलं छे. एना परिणमनथी विवेकी आत्मा भय पामे छे अने तेथी ते पोताना आत्माने कहे छे के हे आत्मन्! तमे पोताना शुद्धरूपे प्रकाशमय थाओ. विभाव मायारूप तमारा वैराट स्वरूपनो परिहार करवा माटे विवेकरूप अर्जुन पोताना आत्मारूप कृष्णने कहे छे के हे आत्मारूप कृष्ण तमारी कर्मरूप विभाव मायाथी बनेली वैराट् स्वरूपताने देखीने हुं भय पामु छु. कर्मरूप मायाए तमे विश्वरूप जणाओ छो अने तेथी आखी दुनिया तमारी कर्मरूप मायाना वैराट् स्वरूपमा देखाय छे माटे हेनो त्याग करीने तमे पोताना शुद्ध निर्मल रूपने प्रकाशो के जेथी हुं आनन्द पामुं. आ प्रमाणे विवेक ज्ञानरूप अर्जुन पोताना आत्मारूप कृष्णने कहे छे. ___ विवेक ज्ञान पोताना आत्माने आ प्रमाणे ज्यारथी विज्ञप्ति करे छे त्यारथी समजवू के हवे आत्मा उत्क्रान्ति मार्गमां संचरेलो कूटातो, पीटातो, अथडातो, अने ठोकरो खातो पोताना शुद्ध धर्मना आविर्भावने प्राप्त करवानो एम निश्चयथी अवबोधवं. पोतानी शुद्धता अवबोधी अने अशुद्धताथी भय पामवानुं थयु त्यारथी समजवू के हवे आत्मानी वेळा जागी, पोताना आत्माने विवेक दृष्टिथी भगवान् तरीके ओळखीने भगवान् शब्दथी संबोध्यो एटले समजवू के पोतानुं भगवानपणुं प्रगट करवानो मार्ग खुल्लो थयो. पोतानी सिद्धता, बद्धता अने परमात्मता अवबोध्या बाद आवा प्रकारना उद्गारो नीकळे छे अने पोताना आत्माने कहेवाय छे के हे भगवन् तुं पोताना शुद्ध स्वरूपने प्रकाश. पोताना आत्माने माटे जेने आ, मान प्रगट्यु अर्थात् उत्तम सत्कार प्रेम भक्ति उत्पन्न थइ ते आत्मा खरेखर पोताना हाथमां मुक्तिने धारण करनार थयो एम अवबोधवं. उपर्युक्त विवेकनो प्रकाश खरेखर आत्मज्ञानीने प्राप्त थाय छे.
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