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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR October-2016 पारिवारिक व्यवसाय में कपड़े की मील की ज़िम्मेदारियों का वहन करना स्वीकार कर लिया। उनके जीवनपरिवर्तन में मुख्य तीन प्रसंगों का बहुत बड़ा श्रेय रहा है. १. गुजरात का दुष्काल, २. महात्मा गांधीजी का उपवास आंदोलन और ३. सामाजिक कार्यक्षेत्र का विस्तार। उन्होंने कई तीर्थों व जिनालयों के जीर्णोद्धार का सौभाग्य प्राप्त किया, जैसे-राणकपुर, आबू, कुंभारिया, गिरनार, तारंगा आदि। साथ ही श्रीसंघ के बहुत सारे सम्मेलनों में भी इनका योगदान सराहनीय रहा है। औद्योगिकक्षेत्र में भारत को उच्चतम स्थान पर ले जाने हेतु एक सक्षम उद्योगपति के रूप में आधुनिक भारत की नीव को मज़बूती प्रदान करने में भी इनका अविस्मरणीय योगदान रहा है। ऐसे उन्नत व्यक्तित्व के धनी दिनांक २७/१/१९८० के दिन इस दुनिया को अलविदा कहते हुए अपनी आत्मा को परमात्मा में लीन कर लिए। ग्रंथमाला व संस्था के प्रेरणास्रोत- मुनि श्री पुण्यविजयजी : पुण्यमूर्तिः पुण्यचेताः पुण्यधीः पुण्यवामनाः । पुण्यकर्मा पुण्यशर्मा श्रीपुण्यविजयो मुनिः ।। आगमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजी म. सा. का लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर की संस्थापना में आधारभूत स्तंभसमान योगदान रहा है। उन्होनें वि. सं. १९६५ माघ कृष्ण पंचमी को बड़ौदा (वडोदरा) में मुनिवर्य श्री चतुरविजयजी का शिष्यत्व स्वीकार किया। मुनिश्री पुण्यविजयजी ने दीक्षा से बहुत कम समय में ही प्रकरणग्रंथ, मार्गोपदेशिका, सिद्धहेम लघुवृत्ति, हेमलघुप्रक्रिया, चंद्रप्रभाव्याकरण, हितोपदेश, दशकुमारचरित आदि काव्यों का भी वाचन किया। आगे चलकर उनकी मुलाकात प्रज्ञाचक्षु पंडित श्री सुखलालजी संघवी के साथ हुई, उस दौरान सुखलालजी से उन्होंने वैदिक व बौद्धदर्शन का भी परिशीलन किया। For Private and Personal Use Only
SR No.525315
Book TitleShrutsagar 2016 10 Volume 03 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size8 MB
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