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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वनाथ विद्यापीठ ग्रंथमाला एक परिचय राहुल आर. त्रिवेदी 'जैनं जयति शासनम्' इस वाक्य से ही हमें अनुभूति होती है कि जैन धर्म शाश्वत है। इसमें कोई शंका नहीं है। कहा गया है 'धर्मो रक्षति रक्षितः' अर्थात् जो धर्म की रक्षा करता है उसकी रक्षा धर्म ही करता है। धार्मिक कार्यों के अनेक मार्ग हैं, उनमें शास्त्ररक्षा ही उत्तम धर्म माना गया है। इस प्रकार का कोई भी कार्य प्रभुकृपा से ही सम्पन्न होता है। __ऐसा ही एक कार्य २३वें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ की जन्मभूमि काशी में हुआ। जहाँ जैन व प्राच्य विद्या के केन्द्र के रूप में पार्श्वनाथ विद्यापीठ की स्थापना की गई। जहाँ से कई विद्वानों ने सरस्वती की उपासना कर समाज में ख्याति प्राप्त की है। बहुत छात्रों ने एम.ए. तथा पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त कर जैन धर्म का आचार-विचार व उद्देश्य विश्वभर में फैलाया है। इस पार्श्वनाथ विद्यापीठ से बहुत से ग्रंथों का प्रकाशन व संपादन हुआ है। इस कार्य में बहुत से विद्वानों ने परिश्रम कर शोधलेखों, शोधप्रबंध व ऐतिहासिक ग्रंथों का प्रकाशन किया है। इससे देश-विदेश में इसकी ख्याति हुई है और होती रहेगी। पार्श्वनाथ संस्थान की स्थापना एवं उद्देश्य: ___ आज से लगभग ७९वर्ष पूर्व बनारस में श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम की स्थापना हुई थी। स्थापना के समय लक्ष्यबिन्दु यह था कि वर्तमान जैन समाज को ऐसे विद्वानों की आवश्यतकता है जो अपने विषय की गहराई में उतरे हों, जिनकी लेखनी में शक्ति हो और वाणी में ऐसा प्रभाव हो जो विश्वकल्याण को अपने जीवन का ध्येय बना सके। ऐसे लक्ष्यबिंदु से पार्श्वनाथ विद्याश्रम की स्थापना 'श्री सोहनलाल जैन धर्म प्रचारक समिति-अमृतसर' की ओर से सन् १९३७ में की गई थी। प्रस्तुत समिति पंजाब के सुप्रसिद्ध जैनाचार्य पूज्य श्री सोहनलालजी महाराज की स्मृति में स्थापित हुई । जिसके मूल प्रेरक पंजाब केसरी जैनाचार्य पूज्य श्री काशीरामजी For Private and Personal Use Only
SR No.525313
Book TitleShrutsagar 2016 08 Volume 03 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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