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श्रुतसागर
जुलाई-२०१६ भ्रमर शब्द में भी म के स्थान पर स होता है तब ही र के स्थान पर ल होता
आर्षप्राकृत में इतने नियमों की स्पष्टता के बाद भी कई स्थानों पर र के स्थान पर ल के उदाहरण मिलते हैं।
द्वादशाङ्गम् – द्वादश + अङ्गम् = दुवालसंगं । आर्ष प्राकृत में द - ल के कई उदाहरण मिलते हैं।
छः अक्ष्यादौ ८.२.१७- अक्षि आदि शब्दों में क्ष – छ के प्रयोग का आदेश किया गया है।
सामान्य प्राकृत में तो इसके लिए यह भी नियम है कि क्ष-छ ही होता है ख का प्रयोग नहीं होता किन्तु आर्ष प्राकृत में तो क्ष – ख का प्रयोग भी मिलता है।
'छ' अक्षि – अच्छि, इक्षु – उच्छु, लक्ष्मी – लच्छी, कक्षः – कच्छो, क्षुतम्- छीअं, क्षीरम् – छीरं, सदृक्षः – सरिच्छो, वृक्षः –वच्छो, मक्षिका - मच्छाआ, क्षेत्रम् – छेत्तं, मक्षिका – मच्छिआ, क्षुधा – छुहा, दक्षः – दच्छो, कुक्षिः – कुच्छी, वक्षः – वच्छं, क्षुण्णः -छुण्णो, कक्षा – कच्छा, क्षार – छरो, कौक्षेयकम् – कुच्छेअयं, क्षुरः छुरो, उक्षा – उक्षन् – उच्छा, क्षतम् - छयं, सादृक्ष्यम् – सारिच्छं ___आर्ष प्राकृत में इसके अलावा भी क्ष के परिवर्तन प्राप्त होते हैं जो कि क्ष के स्थानपर ख में परिवर्तित होते हैं।
ह्रस्वात् त्य श्च त्स प्साम् अनिश्चले ८.२.२१ – यदि किसी स्वर में ह्रस्व स्वर के बाद मे त्य, श्च, त्स अथवा प्स में से कोई एक हो तो उसके स्थान पर छ की प्राप्ति होती है, किन्तु यह नियम निश्चल शब्द में रहे हुए श्च के लिए नहीं है। त्य के उदाहरण – पत्यम् – पच्छं, पत्या – पच्छा, मिथ्या – मिच्छा।
श्च के उदाहरण – पश्चिमम् – पच्छिमं, आश्चर्यम् – अच्छेरं, पश्चात् – पच्छा ।
त्स के उदाहरण – लिप्सते – लिच्छइ, जुगुप्सति, जुगुच्छर, अप्सरा - अच्छरा।
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