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श्रुतसागर
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जुलाई-२०१६ का आगम होता है, इस कारण से यह नियम अन्य शब्दों को प्रभावित करता है परंतु चैत्य के स्थान पर - चेतियं – चेइअं होता है, परंतु आर्ष प्राकृत में चैत्य के पूर्ण शब्द के स्थान पर ची बोला जाता है। चैत्यवन्दनम् – चीइवंदणं
आर्ष में ऐ के स्थान पर अइ का प्रयोग इन शब्दों में होता है
सैन्यम् –सइन्नं, दैत्यः -दइच्चो, दैन्यम् – दइन्नं, ऐश्वर्यम् – अइसरिअं, भैरवः – भइरव, वैजवन – वइजवणो, देवदत्तम् – दइवअं, वैतालीयम् - वइआलीअं, वैदेशः – वइएसो, वैदेहः – वइएहो, वैदर्भ – वइदब्भो, वैश्वानर -वइस्साणरो, कैतव-कइअवं, वैशाखः-वइसाहो, स्वैर-सहरं, चैत्यम्-चइयं __ और इस प्रकार भी प्राप्त होता है- कगचजतदपयवां प्रायो लुक् ८.१.१७७ -यदि किसी भी स्वर के पश्चात क, ग, च, ज, त, द, प, य और व अनादि रूप से (याने आदि में नहीं) और असंयुक्त रूप से (याने हलन्त रूप से नहीं) रहे हुए हों तो उनका प्रायः बहुत करके लोप हो जाता है जैसे
'क' के उदारण – तीर्थंकरः- तित्थयरो, लोकः – लोओ, शकटम् – सयढं । 'ग' के उदाहरण - नग - नओ, नगरम् – नयरं, मृगांकः – मयंको। 'च' के उदाहरण – शची - सई, कचग्रह – कयग्गहो। 'ज' के उदाहरण – रजतम् – रययं, प्रजापतिः – पयावई, गजः – गओ। 'त' के उदाहरण - वितारण- विआणं, रसातलम्- रसायलं, यदि - जई। 'द' के उदाहरण- गदा – गया, मदनः – मयणो। 'प' के उदाहरण- रिपुः – रिऊ, सुपुरुष - सुउरिसो। 'य' के उदाहरण - दयालु – दयालु, नयनम् – नयणं, वियोग - विओओ।
'व' के उदाहरण- लावण्यम्- लायण्णं, विबुधः- विउहो, वडवानलःवलयाणलो।
इस सूत्र में प्रायः अव्यय का ग्रहण किया गया है जिसका तात्पर्य यह है कि बहुत करके लोप होता है, तदनुसार किन्हीं किन्हीं शब्दों में क ग च ज त द प य और व का लोप नहीं भी होता है जैसे
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