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श्रुतसागर
जुलाई-२०१६ तपागच्छराय नयणि निरखिउ, पुरुषरतन निश्चिइं परखिउं। ततखणि गुरे उच्छंगिइं लिउ, कर लंबावीनइ जोई ॥६॥ ऊरध रेखा करि छइ किसी, श्रीजयाणंदसूरि मनि ते वसी। एह पुरुषना जाणिया मर्म, एह मस्तकि उदिवंतउं कर्म ॥७॥ किए होसिइ जगह प्रधान, राय राणा सहू देसिइं मान। जिणसासणि होसिइ जयवंत, कई होसिइ मोटउ धनवंत ।।८।। इस्यां वचन गुरुना सांभली, माय बाप मनि हुई रुली। साजणसीह खमासण दीयइ, सोमकुमर तिहां दीक्षा लीयइ ॥९॥ शुद्ध महूरत सुहगुरि लीउ, कर्मी कह मो संजम दीउ। कालिकसूरि साथिइं सरसती, एह वात आगइ इम हुती ॥१०॥ ततखिणि वेस अणावी करी, सोमसुंदर मुनि मस्तकि धरी।
ओघउ करि आपी मुहपती, करमी बहनि हूई महा सती ॥११॥ तीसइ संवत्सरी गुरु-जम्म(इ), सात्रीसइ लिउ संजमधर्म । सातत्रीसइ उवज्झायपदि थया, चउविह सयल संघ हरखीया ॥१२॥ भणिआ ज्ञानसागरसूरि कन्हइ, गणहरपद कीउं सत्तावनइ। नरसमुद अणहिलपुरमाहि, उच्छव मंडिउ नरसिंह साहि॥१३॥ गच्छनायक देवसुंदरसूरि, नरसिंह साह मनोरथ पूरि। ढीलीवाल हुई मनि रुली, अणहिलपुरि गूडी ऊछली ॥१४।। ततखिणि लगन गणावी करि, कूकतडी चिहु दिसिइं फिरी। तेडाव्या संघ चिहु दिसि तणा, करई महोत्सव तिहां अति घणा ॥१५॥ केलवीइं घरि घण पकवान, नरसिंह साह संघ दिइ बहुमान । सालि दालि भोजन घृत-घोल, करपूर-वासि बीडां तंबोलि ॥१६॥ मडि कबाहि संघह दिई घणां, सुरंग चीर सूकडि छाटणां । भली भक्ति गुरु पहिरामणी, धन लक्ष्मी साह नरसिंह तणी॥१७।। तलीआ तोरण घर घरि बारि, रास भास खेलई नर-नारि । गीत गान गाइं नितुं धूआ, सोमसुंदरसूरि गणधर हूआ॥१८॥
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