SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR थींबू चीतः कृ (चीत्करोति) हा था चलति नासÓ नश्यति, पलायते त्रासÓ त्रस्यति, त्रसति qाप२६ व्याप्रियते, व्यापृणोति साम(समा)२Ó समः किरति पंडु (मनु) हा ष (ख)जयति नींदृर्ध निंदति, जुगुप्सते, गर्हते ६३२४६ कटिस्थ (?) यति alषर्ध अस्यति, निरस्यति, निः धात निक्षिपति, प्रक्षिपति थिए चिनोति, चिनुते डुमर्ध भवति, जायते भाय माति, मिमीते २६६ रुणद्धि, रुंद्धे पवार (वेव) व्ययते.... पेबर्ध नुदति, प्रेरयति शेअर्ध रोदिति, परिदेवयति झांषर्ध झाष(?)ति अनूखार्ध उत्क्रना (?) ति आंजर्ध प्राप्नोति, घेट(?)ति स्पर्ध∫ स्वर्धते, मिष(?) ति सुथ कुध्यति, कुथ्नाति सिएमिर्ध शनैर्मिनोत्यब्दः डुरमाई...........क्लाम्यति गवअवर्ध गलद् गलति धंधोबर्ध ध्रुतं धूनयति 415(स) परे परः(?) sasad कलं क्वणति www.kobatirth.org 30 અથ ક્રિયા Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रुटÓ त्रट्यति, तु (त्रु)टति भीषर्ध भिक्षति(ते) सेवर्ध सेवत्, भजति, श्रयति वी५२६ विकिरति, विक्षिपति पीठ(3) २ पिच्च(पीड)यति डींडा(डो)स) आंदोलयति जी हाव भापयते, भीषयते ६२४६ ५।टर्ध कृंतति वीछसर्ध वेस्तु (विक्षालयति) ५२वस (?) अपस्किरति सायर्ध संचिनुते, संचिनोति पढ अधीते, पठति च युनिक्ति, युंक्ते तुरी (?) स्फूर्जते पोअर्ध प्रात् वौ (प्रबयति) २भर्ध क्रीडति, दीव्यति, रमते सभ (भेस)) मिश्रयति भूर्ध बुडति, मज्जाति सुग लुनाति, ते घट संभवति, घटते वास वास्यते ताम्रचूडः भथर्ध मथ्नाति, मथति June-2016 १(ज)सजस बहु स्पंदति भूः टसqसर्धं टलद् त्रसति द्रोऽर्ध द्रुतं स्फोटयति वोढर्ध दः (उद्वेष्टते) थर्ध चटति, आरोहति (?) जुहोति For Private and Personal Use Only
SR No.525311
Book TitleShrutsagar 2016 06 Volume 03 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy