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घोघापुरमंडन श्रीनवखंडा - पार्श्वनाथ स्तवन
संपा. मञ्जुनाथ भट्ट
कृति परिचय - प्रस्तुत 'पार्श्वनाथ स्तवन' कृति के कर्ता प्रतिष्ठासोमगणिजी हैं, जो वि.सं.१५०१ में विद्यमान थे । प्रायः अद्यपर्यन्त अप्रकाशित इस रचना का प्रकाशन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर कोबा के जैन एवं प्राच्यविद्या शोध ग्रन्थागार में प्राप्त एकमात्र हस्तप्रत के आधार पर किया जा रहा है। देवभाषा संस्कृत और शार्दूलविक्रीडित आदि छंदो में निबद्ध यह कृति २५ श्लोकों में पूर्ण हुई है।
कर्ता ने घोघापुरतीर्थाधिपति श्रीनवखण्डा पार्श्वजिन की स्तवना करते हुए प्रारंभ में ही कहा है कि- 'घोघापुरमंडनं तमसमश्रेयः श्रियामाश्रयम् श्रीपार्श्वं नवखण्डमण्डिततनुं स्तोष्ये जिनस्वामिनम्' अंधकार को नष्ट करनेवाले कल्याण के आश्रयभूत ऐसे नवखंडा पार्श्वनाथ की कई विशेषणों व उपमाओं के साथ स्तवना की गई है. जैसे कि 'नीलोत्पलश्यामल' अर्थात् नीलकमल जैसी कान्ति वाले, ‘सेवकवत्सलः कुशलकृत् पार्श्वः’
यह भी कहा गया है कि ‘यन्नामस्मरणात् प्रयान्ति विलयं सर्वापदः सम्पदः स्युर्वश्याश्च सुरासुराः' जिनके नामस्मरण से समस्त आपदाओं का विनाश व सर्व संपदाओं की प्राप्ति होती है, सुर-असुर भी जिनके नामस्मरण से अधीन हो जाते हैं,
'कुष्टं दुष्टमपि प्रयाति विलयं सर्वेक्षरास्तत्क्षणात् क्षीयन्ते स भगंदरः कृतदरः..... ....... भक्तनरो न रोगनिकरैरापीड्यते' भयंकर प्रकार के भगंदर, दुष्ट ऐसे कुष्टादि सर्व रोग तत्क्षण नष्ट हो जाते हैं. प्रभुपार्श्व नामयुक्त मंत्र-यंत्रादि भी इच्छित को देने में शीघ्र फलित हो जाते हैं.
एक स्थान पर कर्ता ने सुन्दर उपमायुक्त लक्ष्मी को भी विशेषण के रूप में प्रयुक्त करते हुए कहा है कि- सुन्दर चरणयुगल वाली, दिव्य मौक्तिकों के हार को हृदय पर धारण करने वाली, कंकणशोभित करयुगल वाली व पद्मसरोवर में निवास करने वाली श्रीदेवी (लक्ष्मीजी) उसके घर में क्रीडा करती हैं, जसके मुख में प्रभु पार्श्वजिन का नाम रहता है.
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