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संपादकीय
डॉ. उत्तमसिंह श्रुतसागर का यह अंक आपके करकमलों में सादर समर्पित करते हुए हार्दिक आनन्द की अनुभूति हो रही है। इस अंक में गुरुवाणी शीर्षक के तहत आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. का लेख प्रकाशित किया जा रहा है जिसमें आत्मा एवं परमात्मा की अभेदोपासना रूप श्रेष्ठतर ज्ञानयोग का सुन्दर वर्णन किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के प्रवचनांशों की पुस्तक 'Beyond Doubt' से क्रमबद्ध श्रेणी के तहत संकलित किया गया है।
__ अप्रकाशित कृति प्रकाशन योजना के तहत इस अंक में प.पू. आ.श्री वि.योगतिलकसूरिजी म.सा. द्वारा संपादित 'श्री वीरजिन हालरडु' नामक प्राचीन कृति प्रकाशित की जा रही है। मारुगुर्जर भाषा में निबद्ध यह पद्यबद्ध रचना प्रसिद्ध जैनकवि श्री वीरविजयजी म.सा. कृत है। इसके साथ ही पं. श्री मञ्जनाथ भट्ट विरचित 'ज्ञानमन्दिरपञ्चकम्' नामक मौलिक रचना भी प्रकाशित की जा रही है जिसमें आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबातीर्थ का सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया गया है। ___ प.पू.मुनिश्री सुयसचंद्रविजयजी म.सा. द्वरा संकलित व संपादित नाणा तीर्थना केटलाक प्राचीन लेखो' नामक लेख के तहत इस तीर्थ से प्राप्त प्राचीन मूर्तिलेख प्रकाशित किये जा रहे हैं पूज्यश्री ने इन महत्त्वपूर्ण लेखों का संकलन एवं संपादन कर प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर को प्रकाश में लाने का सुन्दर प्रयास किया है।
पुनः प्रकाशन योजना के तहत इस बार भारतीय चित्रकला पर एक दृष्टि' नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। श्री अंबालाल प्रेमचंद शाह द्वारा संपादित यह लेख विश्ववाणी' नामक पत्रिका में जनवरी १९४२ में प्रकाशित हुआ था। इसके साथ ही जोली सांडेसरा (शोधछात्रा) द्वारा लिखित 'कुमारपालचरियं में घटित लक्षणा का स्वरूप' नामक शोधपूर्ण लेख भी प्रकाशित किया जा रहा है। 'आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में ग्रन्थसूचना शोधपद्धति एक परिचय' लेख के तहत इस ग्रन्थागार में विद्यमान शोधसामग्री वाचकों के लिए कम से कम समय में उपलब्ध कराने हेतु प्रयुक्त संगणकीय प्रक्रिया का परिचय दिया गया है। ___ आशा है इस अंक में संकलित सामग्री द्वारा हमारे वाचक लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से अवगत कराने की कृपा करेंगे।
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