________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
30
श्रुतसागर
मई-२०१६ * यदि किसी नाम का विकल्प हो, जैसे- कल्प या कप्प, तो उसे इस प्रकार
ढूँढा जा सकता है-कल्प/कप्प. इसप्रकार ढूँढने से कल्पसूत्र नाम हो अथवा
कप्पसुत्त, उसे तुरन्त ही ढूँढकर ला देता है. * इसी प्रकार यदि कम्प्यूटर को यह आदेश दिया जाता है कि कल्प और सूत्र जिस नाम में हों, वैसा नाम ढूँढकर लाओ, तो कल्प+सूत्र ऐसा टाईप कर
शोध करने से तुरन्त कल्पसूत्र ढूँढकर ला देता है. * अपेक्षित सामग्री की जितनी सूचनाएँ, नाम, नाम का अंश, भाषा आदि
सूचनाएँ उपलब्ध हों, उतनी ही सूचनाओं की प्रविष्टि कर शोध को सीमित किया जा सकता है. * निर्दिष्ट खाने में टाईप किया हुआ शब्द चाहिए अथवा उस शब्द के अतिरिक्त
अन्य सारे शब्द चाहिएँ, तो इस प्रकार का शोध भी किया जा सकता है. उदाहरण के लिए यदि वाचक कल्याणमंदिर की टीकाओं पर अभ्यास कर रहा हो और उसे समयसुंदर गणि के द्वारा रचित टीका चाहिए तो कृति के सर्च फार्म में कति नाम में कल्याणमंदिर+टीका तथा विद्वान के नाम में समयसुंदर टाईप कर ढूँढने से समयसुंदर की टीकावाले कल्याणमंदिर स्तोत्र की सम्पूर्ण सूचनाएँ दृष्टिगत होती हैं परन्तु यदि उसके पास समयसुंदर की टीका हो और उसके अतिरिक्त अन्य टीकाएँ चाहिएँ तो कृतिनाम वाले खाने में कल्याणमन्दिर तथा विद्वान नाम में !(समयसुंदर) इसप्रकार टाईप करके शोध करने से समयसुंदर के सिवाय अन्य सारे विद्वानों की टीकाओं की सूची देखने को मिलेगी. * कृति प्रकाशित है अथवा अप्रकाशित? यह जानने के लिए कृति के शोध प्रपत्र में कृतिनाम वाले खाने में कृति का नाम टाईप करके सबसे नीचे दाहिनी ओर बने बॉक्स में Related to HP और Only पर टिक् करने से मात्र वैसी कृतियों की सूची कम्यूटर स्क्रीन पर आएगी जो न तो प्रकाशन से जुड़ी हुई हैं, न ही मैगेजिन के अंकों से जुड़ी हुई हैं, बल्कि मात्र हस्तप्रत से जुड़ी हुई हैं. इस प्रकार अपने लायब्रेरी प्रोग्राम की सूचनाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वह कृति अप्रकाशित है.
For Private and Personal Use Only