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मई-२०१६
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श्रुतसागर
वाले खाने में यदि “उत्तराध्य” टाईप करते हैं, प्रकाशकवाले खाने में “भद्रंकर", सम्पादक वाले खाने में “चंदनबाला” तथा पूर्णता वाले खाने में “आगे से जारी यहाँ समाप्त” वाला विकल्प पसन्द करते हैं तो भद्रंकर प्रकाशन से प्रकाशित, हीरालाल हंसराज द्वारा सम्पादित व साध्वी चंदनबाला द्वारा पुनः सम्पादित उत्तराध्ययनसूत्र का दूसरा भाग तुरन्त ही कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाता है, जिसमें मूल उत्तराध्ययनसूत्र तथा उसके ऊपर आचार्य जयकीर्तिसूरिजी द्वारा रचित दीपिका टीका प्रकाशित हुई है और जो “उत्तराध्याया” के नाम से ई. सन् २००९ में प्रकाशित हुआ है.
इसी प्रकार एडवान्स सर्च के फार्म में कृति नाम वाले खाने में यदि “गुणाकर” टाईप करते हैं तथा कृतिस्वरूप वाले खाने में “टीका” वाला विकल्प पसन्द करते हैं तो “भक्तामरस्तोत्र" पर आचार्य श्रीगुणाकरसूरि द्वारा रचित “गुणाकरीय वृत्ति” की सूचना तुरन्त ही कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाती है, उसके नीचेवाले बेल्ट में उस कृति के साथ संलग्न ३० हस्तप्रत और ८ प्रकाशन दिखाई देते हैं. विद्वान नाम वाले खाने में यदि “ रम्यरेणु" टाईप करते हैं तथा विद्वानस्वरूप वाले खाने में “साध्वी” वाला विकल्प पसन्द करते हैं तो साध्वी रम्यगुणाश्रीजी की शिष्या साध्वी हर्षगुणाश्रीजी का नाम कम्प्युटर स्क्रीन पर दिखाई देता है, जिनका प्रचलित नाम “रम्यरेणु” है. उसके नीचेवाले बेल्ट में हर्षगुणाश्रीजी द्वारा रचित २१ कृतियों की सूची तथा उनके द्वारा सम्पादित १० प्रकाशनों की सूची भी दिखाई देती है.
एडवान्स सर्च के इस शोधप्रपत्र में यदि हम अपेक्षित विद्वानों के ५० से अधिक या ५० से कम प्रकाशनों की सूची देखना चाहें तो विद्वान नाम में विद्वान का नाम टाईप करके विद्वान से जुड़े हुए प्रकाशनों की संख्या में ५० से कम या अधिकवाला विकल्प चयन करते हैं तो उस विद्वान की ५० से अधिक या ५० से कम प्रकाशनों की सूची देखी जा सकती है. उदाहरण के लिए यदि विद्वान नाम में यशोविजय टाईप करते हैं तथा अपेक्षित प्रकाशनों की संख्या में ५० से अधिकवाला विकल्प चयन करते हैं तो यशोविजयजी के द्वारा सम्पादित ५० से अधिक प्रकाशनों की सूची देखने को मिलती है. इस प्रकार किसी भी
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