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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्रैल-२०१६ 32 श्रुतसागर ५. पूज्य श्रमण-श्रमणियों का जहाँ कालधर्म हो, उसी क्षेत्र में पार्थिव शरीर का अग्निसंस्कार किया जाए. ६. भारत के सम्पूर्ण ज्ञानभंडारों में संग्रहित प्राचीन अर्वाचीन ज्ञान-विरासत का आधुनिक तकनीक आदि के द्वारा सर्वग्राही संकलन किया जाए. ७. जैनधर्म से अन्य धर्मों में गलत रूप से हो रहे धर्मान्तरण को रोकने के उपाय. ८. वर्षीदान की शोभायात्रा का स्वरूप और ज्यादा शालीनतापूर्ण हो, इस हेतु योग्य प्रयास. ९. आमन्त्रण-पत्रिका तथा आयोजन सादगीपूर्ण तथा कम खर्च में करने हेतु प्रेरणा व मार्गदर्शन. १०. वर्तमान देश-काल की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए नई पीढ़ी की मानसिकता और रुचि के अनुसार धार्मिक पाठशालाओं का सर्वग्राही, असरकारक व सक्षम रूप से पुनरुद्धार किया जाए. ११. जैनों के द्वारा संचालित, जैनत्व के संस्कारों को पोषित करने वाले शिक्षण संस्थानों का सर्जन. १२. जैनत्व की अच्छाईयाँ राजनीति व राज्यतंत्र में भी स्थान पाएँ उसके उपाय. १३. साधु-साध्वीजीओं के अध्ययन, विहार-सुरक्षा आदि की सांगोपांग व्यवस्था. १४. जैनसंघों के अनेक प्रकार के व्यवस्थापकीय प्रश्नों का निराकरण. १५. साधु-संस्था को और अधिक गरिमापूर्ण तथा प्रतिभासम्पन्न बनाकर देश-विदेश के जैन-संघ व समाज हेतु अधिक कटिबद्ध व असरकारक बनाने के आयोजन. १६. पीडित व कमजोर साधर्मिक जैनों के लिए देशव्यापी संकलित ठोस आयोजन. १७. प्रत्येक संघ में आ रही साधारण खाते की कमी के निवारण हेतु स्थायी उपाय. १८. जैन इतिहास का सांगोपांग, सर्वग्राही व संशोधनपरक पुनर्लेखन. १९. जैनों की जनसंख्या के मुद्दे. २०. जैनसंघों के बीच में परस्पर और अधिक सहयोग व सौहार्दपूर्ण वातावरण के निर्माण की व्यवस्थाएँ. २१. . जैनसंघों के धर्मद्रव्य हेतु योग्य स्पष्टता प्रदान करनेवाली मार्गदर्शिका का निर्माण. २२. प्रवर समिति, स्थविर समिति, श्रावक - समिति तथा उनके अन्तर्गत अन्य समितियों की घोषणा. For Private and Personal Use Only
SR No.525309
Book TitleShrutsagar 2016 04 Volume 02 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size5 MB
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