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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR यैः शान्तरागरुचिभिः परमाणुभिस्त्वं निर्मापितस्त्रिभुवनैक ललामभूत । तावन्त एव खलु तेप्यणवः पृथिव्यां यत्ते समानमपरं न ही रूपमस्ति ॥ १२ ॥ 27 — हे तीनलोक के आभूषणरूप शांतरस की रुचि से सहित जिनेन्द्रभगवान जिन परमाणुओं से आपकी देह निर्मित हुइ है। वे परमाणु इस संसार में उतने ही थे क्योंकि हमें इस संसार में आपसे अधिक सुंदर कोई और दिखाई नहीं देता काव्यलिंङग अलंकार - जहाँ कारणकार्य नियम के माध्यम से रसोत्पत्ति की जाति है वहाँ काव्यलिंग अलंकार होता है, भक्तामर के इस छंद में यह अलंकार ध्वनित होता है किं शर्वरीषु शशिनाऽह्नि विवस्वता वा युष्मन्मुखेन्दु दलितेषु तमस्सु नाथ । निष्पन्नशालि वन शालिनी जीवलोके कार्यं कियज्लधरै र्जल भार नम्रैः ॥ १९॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir March-2016 हे भगवान जब आपके दिव्यतेज के कारण समस्त प्रकार का अंधकार नष्ट हो जाता है तो फिर दिन में सूर्य के प्रकाश एवं रात्रि में चंद्र के प्रकाश की क्या आवश्यकता है। जिस प्रकार जब खेतों में धान पकने के उपरांत जल से भरे बादलों की क्या आवश्यकता है। यहाँ कारणकार्यपना के माध्यम से रसोत्पत्ति बताई है, अतः काव्यलिंग अलंकार है । भिन्नेभ कुंभ गलदुज्ज्वल शोणिताक्त मुक्ताफलप्रकर भूषित भूमिभागः । बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि नाक्रामति क्रमयुगाचल संश्रितं ते ।। ३५।। - चित्रालंकार – जब काव्य का प्रस्तुतिकरण इतना सबल होता है कि वाचक के मन में संपूर्ण चित्र उपस्थित हो जाता है वहाँ चित्रालंकार होता है यथा For Private and Personal Use Only - हे जिनेन्द्र ऐसा सिंह जिसने अपने प्रहार से भयानक हाथी के गणडस्थल (मस्तक) को छिन्न-भिन्न कर दिया हो और उस गण्डस्थल से निकलने वाले
SR No.525308
Book TitleShrutsagar 2016 03 Volume 02 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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