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मार्च-२०१६
श्रुतसागर
गुण थुणइ मुनिवर दानि, जिनवर सोलमउ संतीसरो, धन्न कज्जिई मान महिअलि, दशनभद्र मुनीसरो, भोगीक सुभद्रा जाउ सालिभद्र, इंद्र जिम अलवेसरो, सीलि थूलिभद्र संघ चउविह, चार ए मंगल करो ॥३०॥ इणि परि जिनवर वांदता ए, नासइं नासई कसमल दरि के, दशनभद्र जिम जगि जउ ए, बोलइ बोलइ हीराणंद सूरि के,
इणि ॥३१॥
रास स्माप्त ॥छ।॥छ।॥छ।
नेमिजिन फाग नेम जिणंदसुं ताली लागी, में तो खेलुंगी संयम फाग सही रे. ने०
ओर सबे मेरे मन नही भावै, मोहि भावे यादुराय सही रे. ने० गिरिनारशिखर पर जाय मिलुंगी, में तो भेटुंगी जिनराय सही रे. ने०...१ में तो सुमति सिखा(सखी) के संग चलुंगी, दुरमति से रहूँगी दूर सही रे. ने० नवविधि भूषण अंग धरूँगी, सील सोहाग सनुर सही रे. ने०...२ वैराग्य वाग में केल करूँगी, पेहरुंगी चारित चीर सही रे. ने० माह रस रंग को रास रचुंगी, रीझावंगी आतमराय सही रे. ने०...३ पुंन्य पिचरकी में हाथ गहूँगी, सुमतारसभर नीर सही रे. ने० फगवाकी फुरसत पाचुंगी, मांगुंगी महानंद ठाय सही रे. ने....४
आ.श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा.
प्रत नं.-८५५७६ प्रायः अप्रकाशित.
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