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संपादकीय
डॉ. उत्तमसिंह श्रुतसागर का यह नूतन अंक हमारे वाचकों के समक्ष सादर समर्पित करते हुए अपार आनन्द की अनुभूति हो रही है। इसमें गुरुवाणी शीर्षक के तहत आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा रचित गद्य-पद्यात्मक रचना प्रकाशित की जा रही है जिस में आत्मज्ञानी का गुणगान किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के प्रवचनांशों की पुस्तक 'Beyond Doubt' से क्रमबद्ध श्रेणी के तहत संकलित किया गया है तथा तृतीय लेख के तहत जैन गौरव पुरूष श्री वीरचन्दजी राघवजी गाँधी द्वारा लिखित 'Contribution of Jainism to Philosophy, History and Progress' नामक लेख क्रमशः प्रकाशित किया जा रहा है।
___ अप्रकाशित कृति प्रकाशन योजना के तहत इस अंक में मध्यकालीन प्रसिद्ध जैन कवि प.पू. विद्याचन्द्र गणि के शिष्य उत्तमचन्द्र गणिकृत 'उपधानतप स्तवन' नामक पद्यबद्ध रचना प्रकाशित की जा रही है। इस कृति का संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर-कोबा के ग्रन्थागार में विद्यमान हस्तप्रत के आधार पर प.पू. आचार्य श्री योगतिलकसूरिजी म.सा. ने किया है। ___ ‘आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में ग्रन्थसूचना शोधपद्धति एक परिचय' लेख में हस्तप्रत आधारित सूचना शोधपद्धति विषयक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्रकाशित की जा रही हैं। इसके साथ ही 'अकोटा की कांस्य प्रतिमाएँ' नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है जिसमें वहाँ से प्राप्त प्रतिमाओं तथा उनकी विशेषताओं का उल्लेख किया गया है।
ग्रन्थ समीक्षा के तहत इस अंक में मनिश्री चारित्ररत्नविजयजी म.सा. द्वारा सम्पादित 'The Real Universe (सर्वज्ञ कथित विश्व व्यवस्था)' नामक ग्रन्थ की समीक्षा प्रकाशित की जा रही है, जिसमें जैन भूगोल-खगोल विषयक विभिन्न शोधपूर्ण लेखों का संकलन-सम्पादन तथा तत्सम्बन्धित विषयों को सचित्र प्रस्तुत किया गया है।
आशा है इस अंक में संकलित सामग्री द्वारा हमारे वाचक लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से अवगत कराने की कृपा करेंगे।
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