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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR December-2015 आज आव्या काल चालसें, निरागी साधुजी जेह रे। हा हा हुं एम जाणती, एहवा साधुनो सो सनेह रे ।।७।। आज रहो... अधिकुं ओछू जे का, ते खमजो ऋषीराय रे। संवर दयावंत साधुजी, तुमने लली लली लागु पाय रे ॥८॥ आज रहो... पाटण पाटण सुं करो, तुमे पाटण पातलो देश रे। एक चामासुं इहां करो, तुमे जगगुरु जय विशेश रे ॥९॥ आज रहो... धन ते नगरी पाटणपुरी, श्रीगुरुजी करे विहार रे। भविक जीव प्रतिबोधवा, एहवा साधुनी बलीहार रे ॥१०॥ आज रहो... देश देसांतरना देहरा, जिहां जुहारो तुमे देव रे। तिहां मुझने संभारजो, चित धरजो अहनिशमेव रे ॥११॥ आज रहो... उठि प्रभातें आवति, गुरुचरण उपासन काज रे। हवे स्वामि वियोगें एकली, नही गमसे हमने आज रे ॥१२॥ आज रहो.. मधुरि सुतवांणी सांभलि, किम विसरसें अम तेह रे। कीम सुके नवपलव तरु, जे सीचो अमरत मेह रे ॥१३॥ आज रहो... जिम तारक जोति निहालतां, सांभरे रोहीणी भरतार रे। तिम तुम मुख देखी सांभरे, मने सोहम जंबुकुमार रे ॥१४॥ आज रहो... मे काल गयो नथी जांणीयो, सुखे मगन रहे जिम देव रे। हवे धन्य नगर ते लोकने, जे करसे तुम पाय सेव रे ॥१५॥ आज रहो... का थोड् घणं जाणज्यो, आ संघतणी अरदास रे। जय जय होज्यो तुमने सदा, भविकलोकनि पूरज्यों आस रे ॥१६॥ आज रहो... कोइ दिन अमने संभारजो, वली वरस वचे एकवार रे। सुभवीर वचनरस चातुरी, चतुर गावंती नार रे ॥१७॥ आज रहो... ॥इति श्री गुहली संपूर्णम् ॥ ॥संवत् १९४१ ना पोषमाशें शुक्लपक्षे नवमी तिथो श्री भृगुवासरे ॥ १२॥१७॥ १. दर्शन करने के अर्थ में, २. सूत्र, ३. शुभवीर. For Private and Personal Use Only
SR No.525305
Book TitleShrutsagar 2015 12 Volume 02 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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