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SHRUTSAGAR
November-2015 विजयप्रसूताम् - विजयः एव प्रसूता यया सा विजयप्रसूता ताम्, काश्मीरजाम्काश्मीरे जाता काश्मीरजा ताम्, भुवनेश्वरीम् भुवनेषु ईश्वरी ताम्। ___ अर्थ:-जो शाकुन्तला है अर्थात् जो हंस का लालन-पालन करती है, जिसका करुणतारूपी अनुराग अधिकतर श्वेत हंसरूपी सज्जनों में स्थित है। जिसमें चन्द्र के समान षोडश कलाएँ विद्यमान हैं। जिनका मुखारविन्द चन्द्र के समान आभायुक्त तथा शान्तमय है। जिसका विजय स्वयं सकलविद्या ही है। जो देवताओं से पूजित भगवती स्वरूप है। जिसके निवास से काश्मीर क्षेत्र पुण्य को प्राप्त हुआ। चौदह भुवनों में जो अधिष्ठात्री है वैसी माँ शारदा (सरस्वती) का भक्तीभाव करपल्लव द्वारा पूजन करता हूँ। पाणी च कङ्कणरवेण हि मङ्गलाङ्गीम्, कर्णौ च मौक्तिकमयेन हि सुन्दराङ्गीम् । नेत्रे च चञ्चलवशेन हि मोहनाङ्गीम्, तां पूजयामि जननीं करपल्लवेन ॥७॥
व्याकरणविशेषः-कङ्कणरवेण - कङ्कणानां रवः कङ्कणरवः तेन, मङ्गलाङ्गीम् - मङ्गलमङ्गं यस्यां सा मङ्गलाङ्गी ताम्। ____ अर्थः-हाथों में पहने हुए कंगनों की झनकार द्वारा सभी को प्रसन्न करनेवाली मंगलांगी और जिसके कर्ण अत्यन्त मूल्यवान मोतीओं के झुमकों से सुशोभित हैं, ऐसी चञ्चल नेत्रों वाली, मनमोहक माँ शारदा का मैं भक्तिभाव पूर्वक करपल्लव द्वारा पूजन करता हूँ।
नन्दन्तु नीतितनुजास्त्रिपुरां स्तुवन्तु, तुष्यन्तु कीर्तितनुजां च गिरनिरन्तु। ध्यायन्तु कोमलमयीं करुणां जपन्तु, तां पूजयन्तु जननी करपल्लवेन ॥८॥
व्याकरणविशेषः-नीतितनुजाः-नीतौ तनुजाः येषां ते (नीतौ इति वैषयिकसप्तमी), कीर्तितनुजाम् - कीर्तिः एव तनुः यस्य सः कीर्तितनुः, तस्माज्जाता सा कीर्तितनुजा ताम्, गिरन्तु - गृ निगरणे इति धातुः (लोटि प्रथमा बहुवचने)।
अर्थः- इस श्लोक के माध्यम से उद्बोधित करते हुए कहा गया है कि- हे
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