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श्रुतसागर
अक्तूबर-२०१५ ॥ ढाल-५॥ दमयंती पाली पलइए। राग-विइराडी। नदी तीरिइं जिन संचरइ, पूठि सामुद्रिक आवइ रे। सखी आवनइ भावि, मनि ते एहवं ए॥६३|| राय लक्षणधर कोइ नर, सखी पालु ए जाइरे। सखी जाइ नि नायक नहीं ए केहर्नु ए॥६४|| तउ पुस्तक कूअडां, लेई जलमाहिं नाखुं रे। सखी नाखुं नइ भाषउं, ज्ञान नहीं वली ए॥६५|| इणि अवसरि इंद्र आवीआ, सवि संदेह भाजइरे। सखी सांजइ नि बाजइ, गजपति ए नरू ए॥६६|| अस्थिकग्रामि पधारिआ, तिहां सूलपाणि जक्षरे। सखी जक्षनि लक्ष, लोक जस ओलगइ ए॥६७|| निश प्रतई मांहि जिन रह्यां, बहु उपसर्ग सहीआरे। सखी सहीआ नइ कहीआ, किम जाइ ते घणा ए ॥६८|| सुर प्रतिबोधी चालीआ, पुहुता पन्नग ठामिरे । सखी ठामि नि नामि, चंडकोसिक तणइ ए॥६९॥ बहु आसातना ते करइ, भव पूरव देखइरे। सखी देखइ नि भाषइ, त्रिभुवननायकू ए ।।७०॥ ओपसमरस आवीओ, पाय लागी नि खामइरे। सखी खामइ नइ नामइ, सीस वली-वली ए॥७१|| संगमइ सुर ओपसर्ग कीआ, वली गोवाले जेहरे। सखी जेहनि तेह प्रसिद्ध, जाणइ सह ए॥७२।। इम उपसर्ग अनेक परिई, श्रीजिनवरई सहीआरे। सखी सहीआ नि लहीआ, कर्मक्षय इणि परिइ ए ।।७३॥ जंभी गामि रजूवालिका, सखी नदीनि पासइरे। सखी पासि नि मास विशाखइं ऊजली ए॥७४॥
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