________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
15
श्रुतसागर
अक्तूबर-२०१५ देव खमावइ वली-वली, सही तुं साचु धीर रे। सुरपति दीधुं साचलुं, नाम तम्हारु महावीर रे ॥४१॥धन-धन त्रिसला॥ करी प्रसंसा अति घणी, देव गयुं देवलोक रे। राय-राणी आणंदीयां, ओछवकीधा लोकरे॥४२॥ धन-धन त्रिसला ।।
ढाल-४ ऊलालानुं हवइ सिद्धारथराय, हीअडइ धरइ बहू भाय । कुमरनइ भणवा ए मुंकइ, आचार कसिउं न चूकइ॥४३॥ सोना-रूपानी लेखिणि, खडीआ मेल्या ए ततखिणि। फलहल पछेडाए आपई, जस कीरति जगि व्यापई॥४४॥ हाथी खंधि चडावइ, वाजित्र सयल बजावइ । आवइ पंडित पासि, एहवइ इंद्र उल्हासि ॥४५॥ ब्राह्मणरूप धरेई, कुतिग असिउंअ करेई। गुरू ठामि वीर बिसारइ, पंडित बोलतओ वारइ ॥४६॥ मनना संदेह भाषइ, जिनवर सवि तत्त्व दाखइ। नींपर्नु जैन व्याकर्ण, जोयुं जिन संसयहरण ॥४७|| सुरपति सरगि सधाव्या, जिनवर सवि वधाव्या। यशोदासिउं मेलिओ वीवाह, परणीलइ धन लाह॥४८॥ अनुक्रमि सुख विलसंता, पुत्री हूई गुणवंता। जमालिनि ते परणावि, सवई लोकांतिक आवि ॥४९॥ माता-पिता परलोकि, पुहुता गयां देवलो(कि)। भाई वडानई ए राज, देई सारइ ए काज ॥५०॥ दीधुं संवछरी दान, भाई मांगइ ए मान। दोइ वरस घरि रहियो, आरंभ सवि परहरयो॥५१॥
For Private and Personal Use Only