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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सितम्बर २०१५ श्रुतसागर 31 कहाँ तक नहीं है, मध्य का भाग नहीं है तो कहाँ से कहाँ तक नहीं है या अंत के भाग नहीं हैं तो कहाँ से नहीं हैं, इसका उल्लेख किया जाता है. जिससे वाचक को कृति की पूर्णता अपूर्णता का सही-सही विवरण पता चलता है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिलेखन पुष्पिका- सामान्यतः हस्तप्रतों के अंत में पाई जाने वाली प्रतिलेखन पुष्पिका कई बार कुछ पेटांकों के अंत में भी मिलती है. सामान्यतया प्रतिलेखन पुष्पिका प्रत के अंत में लिखी होती है, परन्तु कई प्रतों में कृतिलेखन के पश्चात् कृति की अपनी स्वतंत्र पुष्पिका भी मिलती है. यह प्रत्येक कृति के बाद हो सकती है या बीच की किन्हीं एक-दो कृतियों में भी हो सकती है. पुष्पिका अंतर्गत उस कृति का प्रतिलेखक, लेखन स्थल, संवत, मास, पक्षादि विविध माहितियाँ अपनी-अपनी जगह पर योग्य रूप से प्राप्त होती है. इससे यह पता चलता है कि प्रस्तुत प्रत अथवा कृति किसने, कब, कहाँ लिखी है. : प्रतिलेखन पुष्पिका से कभी-कभी महत्त्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक जानकारी मिल जाती है, जिससे हस्तप्रत का महत्त्व काफी बढ जाता है. जैसे - कर्त्ता द्वारा लिखित प्रत, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित प्रत, प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत इत्यादि. कभी कभी तो ऐसा भी मिलता है कि एक ही प्रत के अलग-अलग पेटांक २००-३०० वर्षों के अंतराल में विभिन्न स्थल एवं विभिन्न प्रतिलेखकों के द्वारा लिखे जाते थे. - हस्तप्रत में पत्रांक लेखन सामान्यतया हस्तप्रतों में पत्र के एक ही ओर पत्रांक लिखने की परंपरा है. वह पत्र के अगले भाग में न होकर दूसरी तरफ पत्र की दाहिनी ओर नीचे की तरफ होते हैं. कई प्रतों में बाईं ओर ऊपर की तरफ भी पलांक दिए गए होते हैं. पत्र के जिस ओर पत्रांक नहीं होते हैं उसे प्रारंभिक भाग माना जाता है. अतः उधर से ही पाठ पढने का प्रारंभ करने की परंपरा है. परन्तु कुछ प्रतिलेखक पत्र के प्रारंभिक भाग में ही पत्रांक लिख देते हैं. ऐसा क्वचित् ही पाया जाता है. आधुनिक प्रतों में पत्र के दोनों ओर पत्रांक भी देखे गए हैं. इसे स्पष्ट करने के लिये निम्नलिखितरूप से पेटांक में पृष्ठांक लिखने की परंपरा है. १अ - १०आ - प्रथम पत्र की अगली तरफ से प्रारंभ होकर दसवें पत्र की दूसरी तरफ कृति का समापन हुआ हो. For Private and Personal Use Only
SR No.525302
Book TitleShrutsagar 2015 09 Volume 01 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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