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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१५ सदस्य होते हैं. मिश्रित कृति की समाप्ति के पश्चात् अगले पृष्ठों पर यदि कोई स्वतन्त्र कृति होती है (चाहे वह पूर्वोक्त मिश्रित कृति का सदस्य ही क्यों न हो) तो उसे स्वतन्त्र पेटांक के रूप में पुनः सूचीबद्ध किया जाता है.
यथा-कल्याणमंदिर स्तोत्र सह बालावबोध की समाप्ति के पश्चात् कल्याणमंदिर स्तोत्र का बालावबोध (मात्र पुत्रकृति) अलग से लिखा गया हो तो उस बालावबोध को स्वतन्त्र पेटांक के रूप में पुनः प्रदर्शित किया जाएगा. साथ ही उसका नाम, पत्रांक, पूर्णता, आदि का भी अलग से उल्लेख किया जाता है. उपर्युक्त कृतियों को हम इसप्रकार पेटांक के रूप में देख सकते हैं
पेटांक नाम १ - भक्तामर स्तोत्र सह अर्थ पृ. १८-२५ कृति नाम - भक्तामर स्तोत्र
__भक्तामर स्तोत्र-(मा.गु.)अर्थ पेटांक नाम २ - भक्तामर स्तोत्र का बालावबोध पृ. २६-२७ कृति नाम - भक्तामरस्तोल-(मा.गु.)बालावबोध
इस अवधारणा से किया गया सूचीकरण वाचकों एवं संशोधकों के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध होता है.
हस्तप्रत, पुस्तक, मैगजिन आदि में किसी भी पृष्ठ पर स्थित छोटी-बड़ी कृतियों की सूचना बड़ी आसानी से मिल जाती है. जो अन्यथा मिलनी असंभव सी है. पेटांक की अवधारणा के आधार पर दी गई सूक्ष्म एवं सटीक माहिती प्रदान करना ज्ञानमंदिर की विशेषता है. सूचीकरण की दुनिया में यह एक अनूठा व अत्यंत उपयोगी कदम है.
पेटाकृतियाँ निम्नलिखित स्वरूपों में पायी जाती हैं. स्तवन, स्तोत्र, रास, सज्झाय, चरित्र, पूजा, देववंदन आदि का संग्रह.
किसी प्रधान कृति या कृतिसमूह वाली प्रत या पुस्तक के प्रारंभ अथवा अंत में एकाधिक मूलमान, मात्र पुत्रकृति अथवा मिश्रित कृतिसमूह.
मुख्य कृति से भिन्न स्वतंत्र रूप से दिए गए फुटकर सुभाषित श्लोक, औषधादि विषयक सामग्री, तंत्र-मंत्र आदि भी पाए जाते हैं. इन्हें भी पेटांक के रूप में ही दर्शाया जाता है.
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