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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 20 में प्रयुक्त वाद्यवाचक शब्दों का सचित्र परिचय दिया गया है. आगमों में वाद्यों के नाम यत्र-तत्र विपुल मात्रा में मिलते हैं. जिनमें से अनेक की पहचान दुरूह है. इस कोश में आगमसाहित्य में प्रयुक्त अधिकांश वाद्यवाचक शब्दों की पहचान का कार्य किया गया है. भारतीय प्राचीन वाद्ययन्त्रों के विषय में जानकारी प्राप्त करने वालों के लिए यह एक उपयोगी ग्रन्थ सिद्ध होगा. September-2015 राजप्रश्नीय, निशीथसूत्र, भगवतीसूल, प्रश्नव्याकरण, आचारचूला आदि आगमों में भगवान महावीर के दर्शन हेतु देवागमन, श्रोत्रेन्द्रिय संयम, सामाजिक एवं धार्मिक आयोजनों आदि के प्रसंगों पर वाद्यवाचक शब्दों की लम्बी नामावली प्राप्त होती है. संरचना एवं वादन क्रिया के आधार पर जैनागमों में पाए जानेवाले वाद्ययंत्रों को चार भागों में विभाजित किया गया है- तत, वितत, घन और सुषिर. जो वाद्य तन्त्रयुक्त होते हैं, उन्हें तत कहा जाता है, जो चर्मावनद्ध होते हैं, उन्हें वितत वाद्य कहा जाता है, परस्पर टकराकर अथवा घर्षण के द्वारा जिन वाद्यों को बजाया जाता है, उन्हें घन वाद्य कहा जाता है, तथा फूंक मारकर अथवा हवा के द्वारा जो वाद्य बजाए जाते हैं, उन्हें सुषिर वाद्य कहा जाता है. तत और सुषिर स्वर वाद्य हैं तथा वितत और घन लय वाद्य हैं. प्रस्तुत कोश में राजप्रश्रीयसूत्र को आदर्श मानकर जैनागमों में प्रयुक्त कुल १०८ वाद्ययंत्रों के ऊपर विवेचन किया गया है. प्रस्तुत कोश में पृ. १ से ४४ तक आगमों में प्रयुक्त विभिन्न वाद्यवाचक शब्दों का अकारादिक्रम से विस्तार से परिचय दिया गया है. सर्वप्रथम वाद्यवाचक मूल शब्दों को अकारादिक्रम से यथावत् अकारादिक्रम से बोल्ड टाईप में दिया गया है. उसके आगे कोष्ठक में संस्कृत छाया दी गई है. जो देशी शब्द हैं, उन्हें ज्यों का त्यों कोष्ठक में दे दिया गया है. यदि किसी शब्द का पाठान्तर है, तो उसके आगे (पा.) लिखकर पाठान्तर को सूचित किया गया है. कोष्ठक के आगे प्रमाण स्थल का निर्देश है. मूल प्राकृत शब्द के नीचे हिन्दी के पर्याय तथा क्वचित् अन्यान्य भाषाओं के पर्याय भी दिए गए हैं. एक ही शब्द के अनेक वाद्य प्राप्त होने पर उन सभी वाद्यों का अलग-अलग वर्णन किया गया है. For Private and Personal Use Only कोश में उल्लिखित विवरण अनेक ग्रन्थों से चयनित होने के कारण उनमें भाषा की एकरूपता नहीं है, परन्तु विषय की पूरी-पूरी जानकारी प्राप्त हो सके, इसके लिए
SR No.525302
Book TitleShrutsagar 2015 09 Volume 01 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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