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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनागम सन्दर्भग्रन्थ परिचय रामप्रकाश झा आगम साहित्य भारतीय साहित्य का प्राण होने के साथ-साथ आर्य संस्कृति का एक मूल्यवान् कोष भी है. विश्व के समस्त सम्प्रदायों के अपने-अपने आगम हैं. इनमें जैनागम साहित्य अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है. जैनागमों में वीतराग की वाणी है. वीतरागता का अर्थ है रागरहित आत्मदशा. सरागदशा राग-द्वेष से युक्त आत्मदशा है. जहाँ द्वेष हो वहाँ राग होता ही है, परन्तु जहाँ राग होता है, वहाँ द्वेष नहीं भी होता है. यह अग्नि और धूम की तरह होता है. इसीलिए अंग आगम को वीतराग वाणी कहा जाता है, वीतद्वेष वाणी नहीं. ___ आगम साहित्य ऐसा साहित्य है, जिस पर युगों-युगों से मानव की अंटल श्रद्धा रही है. अतएव जैन एवं जैनेतर दार्शनिकों ने आगम को सर्वोपरि माना है. आज मात्र भारतीय ही नहीं, बल्कि विदेशी विद्वान भी आगम-साहित्य का अध्ययन-संशोधन करते हैं. आगम के मूल शब्दों को समझने और विभिन्न भाषाओं में उनका अर्थघटन करने में, शब्दों की व्युत्पत्ति करने में तुलनात्मक भाषाशास्त्र के अध्येताओं को बड़ी कठिनाई होती है. इस कठिनाई को दूर करने के लिए जैन वाङ्मय में कई सन्दर्भग्रन्थ कोषादि हैं, जिनकी सहायता से वेसारी कठिनाईयाँ दूर हो सकती हैं. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में संग्रहित कुछ विशिष्ट सन्दर्भग्रन्थों का परिचय विद्वानों के उपयोग हेतु यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है. पुस्तक नाम : आगम विषयदर्शन प्रकाशक : आगम श्रुत प्रकाशन-अहमदावाद, प्रकाशन वर्ष ः वि.२०५६, पृष्ठ : ३८३ परिचय - मुनिश्री दीपरत्नसागरजी के द्वारा सम्पादित व आगम श्रुतप्रकाशन, अहमदाबाद से वि. २०५६ में प्रकाशित इस ग्रन्थ में मूल ४५ आगमों का यथाक्रम विषयनिर्देश किया गया है. आगमों का संशोधन, सम्पादनादि करनेवाले विद्वानों तथा शोधार्थियों के लिए यह कोश अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व उपयोगी है. श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा के अनुसार वर्तमान में आगमों की संख्या पैंतालीस . For Private and Personal Use Only
SR No.525302
Book TitleShrutsagar 2015 09 Volume 01 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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