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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आर्य वर्य www.kobatirth.org श्रुतसागर जुलाई-अगस्त- २०१५ कर्ण कल कर्णाटक कल क इसी प्रकार जब 'य' वर्ण पर रेफ लगता है तो भी 'र्' और 'य' दोनों संयुक्त होकर एक नया स्वरूप धारण कर लेते हैं, जो देखने में तो नागरी लिपि के 'द' वर्ण जैसा होता है लेकिन 'र्य' पढा जाता है। हस्तप्रत लिप्यन्तर एवं पठन-पाठन के समय 'र्य' का यह स्वरूप सदैव 'द' का भ्रम करता है। अतः इस चिह्न को विशेरूप से ध्यान में रखना चाहिए। यथा 22 र् + य = र्य तस्य = द अद धार्य वद सर्व भच चतुर्वर्ग उचज एद कार्यालय कदन्तय जब भी अग्र हलन्त 'र्' के बाद 'व' वर्ण आता है तो भी 'र्व' लिखने के लिए एक नये आकार का संयुक्ताक्षर उभरकर आता है, जो देखने में तो नागरी लिपि के 'च' वर्ण जैसा होता है लेकिन पढा जाता है 'र्व' । यथा र् + व = र्व बर+व= च Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गर्वित पूर्वी For Private and Personal Use Only ਸਥਿਤ थु ची
SR No.525301
Book TitleShrutsagar 2015 07 08 Volume 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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