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श्रुतसागर
जुलाई-अगस्त-२०१५ को आधा तथा दूसरे अक्षर को पूरा समानान्तर लिखा जाने लगा। आधुनिक नागरी तथा अन्य आधुनिक लिपियों में अब इसी प्रकार समानान्तर संयुक्ताक्षर
लेखनविधान देखने को मिलता है। * इस लिपि में कुछ अक्षरों का संयुक्त विधान उपरोक्त ब्राह्मी, ग्रंथ, नागरी आदि लिपियों से अत्यन्त भिन्न है। अर्थात् कुछ अक्षरों के आपस में संयुक्त होने पर एक तीसरा ही नया स्वरूप उभर कर सामने आता है जिसे गहन अध्ययन के बाद
ही समझा जा सकता है। * इस लिपि में संयुक्ताक्षर लेखनविधा अति विस्तृत और वैविध्यपूर्ण है। जिसके
कारण इसमें निबद्ध हस्तप्रतों को पढने अथवा लिप्यन्तर करने वालों को अधिक परिश्रम करना पडता है। लेकिन संयुक्ताक्षरों की यह प्रक्रिया कुछ नियमों के तहत चलती है और जिनको इन नियमों का सम्यक् ज्ञान हो उनके लिए इसे
समझना बहुत ही आसान हो जाता है। * इस लिपि में रेफ युक्त वर्गों के लेखन हेतु एकाधिक विधान देखने को मिलते हैं,
जिनमें से कुछ अति सरल हैं तो कुछ अति कठिन। * उत्तरी भारत की प्राचीन तथा आधुनिक लिपियों, दक्षिणी भारत की द्राविड लिपियों तथा भारत के पार्श्ववर्ती देशों की लिपियों का शारदा से बहुत कुछ सादृश्य है। इनमें वर्णमाला, स्वर-व्यंजन भेद, स्वर-क्रम, व्यंजनों का वर्गीकरण, माला नियम आदि सब लगभग समान ही हैं। किसी में कुछ ध्वनियाँ कम हैं तो किसी में अधिक। * ब्राह्मी के अलावा सर्वाधिक लिपियों की जननी होने का गौरव इस लिपि को प्राप्त
है। * गुरुमुखी, टाकरी, डोगरी, मोडी, महाजनी, रामजानी, पावुची, भटाक्षरी, तिब्बती
आदि अनेक लिपियाँ इसी लिपि से उदित हुई हैं। । * यह लिपि लेखन, प्रतिलिपिकरण तथा लिप्यन्तरण के पर्याप्त अनुकूल लिपि है। * इस लिपि का ज्ञान प्राचीन हस्तप्रतों को सरलतापूर्वक पढने, लिप्यन्तर करने, 'प्रतिलिपि करने एवं ऐतिहासिक तथ्यों को जानने में अतीव सहायक सिद्ध होता
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