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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर संयुक्ताक्षरों की स्थिति : मे - जून - २०१५ प्राचीन जैन-नागरी लिपिबद्ध हस्तप्रतों में मिलनेवाले संयुक्ताक्षरों का ज्ञान संपादनकार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। विदित हो कि नागरी लिपि में कुछ अक्षर ऐसे हैं जो दूसरे वर्गों के साथ जुडने पर पूर्णतः परिवर्तित हो जाते हैं और अन्य वर्णों का भ्रम भी उत्पन्न करते हैं । उस परिवर्तित स्वरूप का ज्ञान यदि न हो तो अनेकविध अशुद्धियाँ होने की संभावना बढ जाती है। ञ = क्ख = रक 3 मो इन संयुक्ताच्छरों में विशेषकर 'ज्ज' जो कि 'ज्झ' का भ्रम करता है। 'क्ख' जो कि 'रक, 'वु' या 'खु' का भ्रम उत्पन्न करता है। 'ओ' जो कि 'उ' वर्ण को रद्द (डीलिट) करने अथवा 'न' वर्ण का भ्रम करता है। 'क' वर्ण 'क्ष' या 'कृ' का भ्रम करता है। यदि 'ग' वर्ण में 'ए' की अग्रमाना लगाकर 'गे' लिखा हो तो अग्रमात्रा के कारण 'ण' या 'ऐ' का भ्रम करता है। 'थ' वर्ण 'व्व' एवं 'घ' का भ्रम करता है। 'श' वर्ण 'त्र' या 'ऋ' का भ्रम करता है। 'च्छ' वर्ण 'त्थ' का भ्रम उत्पन्न करता है । यथा = टं www.kobatirth.org ऋ = गे = ए = ण= प = 8 श = श च्छ = ३ [ग ए 62 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ('झ' का भ्रम उत्पन्न करता है) ('रक, रवु या खु' का भ्रम उत्पन्न करता है) ('उ' वर्ण को डीलिट करने अथवा 'न' वर्ण का भ्रम उत्पन्न करता है) ('क्ष' या 'कृ' वर्ण का भ्रम उत्पन्न करता है) (अग्रमात्रा के कारण 'ण' अथवा 'ऐ' वर्ग का भ्रम उत्पन्न करता है। ('ग' अथवा 'ण' वर्णों का भ्रम उत्पन्न करता है) ('ऐ' अथवा 'में' वर्णों का भ्रम उत्पन्न करता है) ('ब्व' का भ्रम उत्पन्न करता है) (त्र' अथवा 'ऋ' का भ्रम उत्पन्न करता है) ('त्य' का भ्रम उत्पन्न करता है) विदित हो कि 'छ' वर्ण के साथ जब 'च्' वर्ण जुड़ता है तो उसे 'च्छ' पढा जाता है, लेकिन जब उसी 'छ' वर्ण के साथ 'त्' वर्ण जुडता है तो 'छ' वर्ण 'थ' में परिवर्तित हो जाता है और संयुक्त अक्षर 'त्थ' का स्वरूप ग्रहण करता है। यदि उसी 'छ' वर्ण के साथ 'स् वर्ण जुड़ता है तो उसे 'स्थ' पढा जाता है, और यदि 'छ' वर्ण दो पूर्णविरामों के मध्य ॥ ॥ इस प्रकार लिखा हो तो उसे गाथा, श्लोक, अध्याय अथवा ग्रंथ पूरक या विषय समाप्ति सूचक चिह्न के रूप में पढा जाता है। ऐसा ही एक वर्ण ॥ ळ ॥ है जो ग्रंथ समाप्ति अथवा अध्याय या पाठ की समाप्ति का द्योतक है। यह अंतिम मंगल For Private and Personal Use Only
SR No.525300
Book TitleShrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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