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SHRUTSAGAR
MAY-JUNE-2015 थाय छे.
कविन धार्मिक प्रयोजन अहीं स्पष्ट अने प्रगट छ ज छतां एनी साथे काव्य के, निर्विघ्ने प्रगट थई शके छ ए आ कृति आपणने बतावे छे.
जयवंतसूरिन एक मात्र लक्ष्य कोशानो हृदयभाव छे. जयवंतसूरिनी कोशा प्रियतमने माटे झरती एक सामान्य विरहिणी स्त्री छे. एनी विशिष्ट व्यक्तितानो कविए लोप करी नांख्यो छे. पण ए विरहिणी स्त्रीना उत्कट प्रेमानुबंधने कविए विशिष्ट व्यक्तिता अी छे खरी - ए उत्कृट प्रेमानुबंधरूपी हीरदोरमां औत्सुक्य, उन्मत्तता, आशाभंग, आत्मनिर्वेद, रोष, व्याकुळता आदि भावोनां मोती गूंथीने आ सर्व भावोने वळी भिन्न-भिन्न संदर्भो, निमित्तो, विभावो, प्रतीको अने उक्तिलढणोथी व्यक्त करी एमणे पोताना कविकर्मनो पण परिचय आप्यो छे. ए परिचय ज अहीं करवा जेवो छे.
वसंत आवे छे अने विरहिणी स्त्रीन औत्सुक्य जागी ऊठे छे. आ उत्सुकताने कवि केवी वाणीभंगीथी व्यक्त करे छे अने एने केवा केवा अनुरूप प्रकृतिसंदर्भमां मूकी आपे छे ते जुओ.
वनमां वसंतऋतु गहगहती आवी, कुसुमावलि परिमलथी महेकी उठी, मनोहर मलय पवन वहेवा लाग्यो अने प्रियने जाणे उडीने मळु एम थवा लाग्यु
उडीने प्रियने मळवानी आकांक्षाने माटे प्रसरता परिमल अने वहेता मलयपवननो संदर्भ केवो काव्यमय अने प्रतीकात्मक बनी रहे छे!
औत्सुक्यनो भाव कवि बे-त्रणवार हाथमा ले छे पण एने धूंटीने घेरो बनावता जाय छे एक वखत ए विरहिणीने लोकलज्जानो त्याग करीने प्रियनी पाछळ-पाछळ भमवानुं मन थाय छे, तो बीजी वखते एनी कल्पना उन्मत्त बनीने पेला पोपटने पुकारी रहे छे.
पोपट, रस्ते जता हुं तने लाख-लाख केसूडां आपीश, जो एकवार तुं मने तारी पांख प्रसारीने मारा सजननी पासे पहोंचाडी दे!'
१. वसंतु ऋतु वलि आव्यु गहगही, परिमलइ कुसुमावलि महमही,
मलया वाय मनोहर वाई, प्रिउनइ ऊडी मलउ इम थाइ. ३ २. केसूहां पपि पालवे, सूडा दिउ तुझ लाख, एक वार मुझ मेलि न सजन पसारी पांख. ३६
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