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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 32 नमुरे... नमुरे... · श्रुतसागर मे-जून-२०१५ धन-धन वासुदेव कृष्ण नरपति, जेणई ए भराविउं बिंब रे। जीवितस्वामि तणी ए मूरति, वांदउं हुं अविलंबरे ॥४५|| दोई सुत साथई लील करती, प्रणमुं अंबिका देविरे । भगत तणी भय भावठि चूरइ, क्षेत्रपाल करई सेवरे ॥४६॥ नमुरे... रतन साह तेजपाल झांझणदे, पेथडदे सुविवेक रे । हरपति प्रमुख श्रावके एणइ, गिरि कीधा उद्धार अनेक रे ॥४७॥ नमुरे... सिद्धराय जेसंगदे नृपनु, सज्झन नांमई महितु रे । तेणइं प्रसाद उद्धार एकीधु, त्रिभोवनि जस गहिगहितुरे ॥४८॥ नमुरे... मानवभव आरय कुल पांमी, कठिन करम रिपु दामी रे । रिवतगिरि भेटउ राजलि वर, मुगति तणा जे कामी रे॥४९॥ ॥कलस।। राग धन्यासी॥ मई गायु रे ऊजलगिरि सिरिमंडणु रे । हां रे बावीसमु जिनराय, दुरगति दुरित विहंडणुं रे॥५०॥ ।। आंचली॥ मई गायुरे... एह नांमई रे अष्टमहासिद्धि संपजइरे, हां रे पुहुचइ मनह जगीस भावई थुणइ रे गुणगाइरे नरनारी, ऊलट घणइ रे ॥५१॥ मई गायु रे.... तपगछपति रे श्रीविशालसोमसूरिसरु रे, सुविहित मुनि जनराय । जयवंता चिरू रे हरखइरे, कहि राजरतन उवज्झाय मंगलकरू रे ॥५२॥ मइं गायुरे... ॥ इति श्री गिरिनारि मंडन स्तवनं समाप्त ।। छ।॥ श्रीरस्तुः॥॥श्री उ. श्रीराजरत्लगणिना विरचितं । पं. हेमरत्नगणिना लखितं ॥॥छ।।।कल्याणमस्तुः। लेखकः।। पाठकयोः।। ।।शुभं भवतु।। ॥श्री श्रमणसंघस्यदीर्घायु भवतुः ॥श्रीः। ॥ श्री। For Private and Personal Use Only
SR No.525300
Book TitleShrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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