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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मे-जून-२०१५ सामलवरण सोहामणु, सहस वरसनु हे प्रतिपाली आय कि, गिरनारि शिखरि मुगतिं गयु, श्रीविशालसोमसूरि प्रणमइ पाय कि ॥४॥ . नेमि जिणेसर.... बावीसमु जिन सुखकरू, जे स्वामी हे श(शि)वसुख दातार कि, संघसोम पंडित भणइ, नित वंदु हे हुं वारोवार कि ॥५॥ नेमि जिणेसर... ॥ इति श्रीनेमिनाथ स्तवनम्॥ कमठासुरहठभंजणु, नीलवरण निरूपम, सपतफणामणिभतु, कुणदीइ ओपम, अश्वसेन नृप तणु पुत्र, धन वामा जननी, पास जिणंद महिमानिधान, ए साचउ अवनी, श्रीविशालसोमसूरींदना ए, विघन करइ विसराल, धरणेंद्र पउमा सहित प्रभु, नितु दइ मंगलमाल ॥१॥ ॥ इति नमस्कारः ॥ प्रभु पास जिणंदा, सेव सारइ फणिंदा, नित नमइ नरिंदा, तेजि जीतइ दिणंदा, श्रीविशालसोमसूरिंदा, जास पादारविंदा, नित सेवि मुणिंदा, भक्तिभावई सूरिंदा ॥१॥ पय प्रणमुं तेहना, जे हुआ नाथ श(शि)वना, कलि कलमजमथना, कम्मरूक्खालिदहना, नमत जिनसमूहा अन्न छंडीअ ऊहा, श्रीविशालसोमसूरि सीहा, ते नमइ राति-दीहा ।।२।। सकल दुरित गालइ, पापनां पंक टालइ, श(शि)वसुख सवि आलइ, राग-दोसा निकालई, श्रीविशालसोमसूरि आखइ, भव्य आगइ सुभाखइ, जिन प्रवचन दाखइ, मुक्ति नहीं जेह पाखइ ।।३।। For Private and Personal Use Only
SR No.525300
Book TitleShrutsagar 2015 05 06 Volume 01 12 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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