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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 67 जनवरी-फरवरी - २०१५ क्य न्य ज्ज + बना सच स पण । |श्च | य, छ । एयर एप्स | RR स.स के खन क्ल म | स रा य ल की । नागरी लिपि में संयुक्ताक्षरयुक्त शब्द लेखन अभ्यास प्राचीन नागरी-लिपिबद्ध पाण्डुलिपियों में शब्दों अथवा वाक्यों के मध्य रिक्तस्थान नहीं छोड़ा जाता था। अर्थात इस लिपि में लिखते समय सभी अक्षर समानान्तर स्वतन्त्र शिरोरेखा के साथ क्रमशः लिखने का विधान रहा है। क्योंकि उस समय हस्तप्रत लेखनसामग्री यथा ताडपत्र, कागज, कलम, स्याही आदि सीमित मात्रा में होते थे और आसानी से प्राप्य भी नहीं थे। अतः कम से कम स्थान अथवा लेखनसामग्री में अधिक से अधिक लेखनकार्य हो सके इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता था। इस कारण हस्तप्रत पढते समय अथवा लिप्यन्तर करते समय वाक्यविन्यास की दृष्टि से अशुद्धि अथवा भ्रम उत्पन्न होने की संभावना रहती है। अतः हस्तप्रत संपादन कार्य करने हेतु भाषाव्याकरण का ज्ञान होना भी अति आवश्यक है। अभ्यास हेतु संयुक्ताक्षरयुक्त कुछ शब्द निम्नवत् हैं For Private and Personal Use Only
SR No.525297
Book TitleShrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size7 MB
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