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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर चोथो भव: www.kobatirth.org 61 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवम्बर २०१४ सिहि-जालिणिमाइसुया, जं भणियमिहासि तं गयमियाणिं । वोच्छामि समासेणं, धण-धणसिरिमोय पड़भज्जा ॥ गाथाथी अनुसन्धान करीने आ चोथा भवमां धन अने धनश्रीनुं चरित्र वर्णव्यं छे. सुशर्मनगरमां सुन्धवा नामे राजा छे, ने वैश्रमण नामे एक महाश्रीमंत सार्थवाह छे. तेने श्रीदेवी नामे धर्मपत्नी छे. धनदेव यक्षनी पूजा करीने संतान याचे छे. ने शिखिनो आत्मा ब्रह्मदेवलोकथी च्यवीने ते श्रीदेवींनी कुक्षीए अवतरे छे. जन्म थाय छे ने पुत्रनुं नाम ‘धन' एवं राखवामां आवे छे. ए ज नगरमां पूर्णभद्र शेठने त्यां गोमतीनी कुक्षीए जालिनीनो जीव स्त्रीपणे जन्मे छे ने तेनुं नाम धनश्री राखवामां आवे छे. कर्मयोगे धन अने धनश्रीना विवाह थाय छे. अग्निशर्मा-तापसना भवमां एक संगमक नामनो तापस हतो, ते पण परिभ्रमण करतो अहीं नंदक नामे दास थयो छे, ते धनने घरे नोकरी करे छे. तेनो परिचय धनश्रीने खूब रुचे छे ने छेवटे तेनी साथे ते वधु पडता संबंधमां मुकाय छे. एक दिवस कोई एक श्रेष्ठीने खूब दान देता जोईने धनना हृदयमां परदेश जईने खूब कमाईने आवुं दान देवुं-एवी भावना जागृत थाय छे. मातापितानी अनुमति मेळवी कमाववा माटे नकळे छे. नन्दक अने धनश्री पण साथे जाय छे. तेनो नाश करवा माटे धनश्री घणा उपायो रचे छे. कामण करीने पेटनो विचित्र व्याधि करे छे. प्रसंगे समुद्रमां नाखी दे छे ने सर्वस्व लईने चाल्या जाय छे. भाग्ययोगे धन बची जाय छे. कर्मयोगे अनेक सुखदुःखनो अनुभव करतो छेवटे धन सार्थवाह खूब धन कमाईने पोताना नगरमां पाछो फरे छे. मातापिता बधी वात पूछे छे. धनश्रीनी हकीकत पूछे छे पण ते कांई कहेतो नथी. छेवटे जाणे छे त्यारे बधाने ते स्त्री उपर धिक्कार उपजे छे. धन नगर बहार जाय छे. त्यां यशोधर आचार्यनी समागम थाय छे. तेमनु चरित्र सांभळीने भवनिर्वेद जागे छे, मातपिताने समजावीने ओने साथै लईने संयम ले छे. For Private and Personal Use Only श्रुतज्ञाननो सुन्दर अभ्यास करी संयमस्थिर बनी एकला विहारनी प्रतिमा धारण करीने विहार करे छे विहार करतां कोशांबी नगरीए जाय छे. नन्दन अने धनश्री पण तेज कौशांबी नगरीमा रहे छे. धनमुनि तेने त्यां वहोरवा जाय छे स्त्री तेने ओळखे छे ने मारी नाखवानो विचार करती ते क्यां छे तेनी तपास करवा दासीने मोकले छे. राते त्यां जईने मुनिनी आसपास लाकडा खडकीने सळगावी मूके छे शुभध्याने काळ करीने
SR No.525295
Book TitleShrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size7 MB
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