SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org समराईच्च कहा परिचय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पं. श्री धुरंधरविजयजी चौदसो चुंमालीस ग्रन्थना कर्ता श्री हरिभद्रसूरिजी म. नी कलमथी लखायेली 'श्रीसमरादित्यकथा' कथा ग्रन्थोमां अपूर्व अने अजोड स्थान धरावे छे. श्री हरिभद्रसूरिजी म. जेटलुं संस्कृत भाषा उपर प्रभुत्व धरावता हता तेटलुं ज के तेथी पण विशेष प्रभुत्व प्राकृत भाषा उपर धरावता हता. तेओश्रीने आगम अने न्याय (दार्शनिक) विषयोनुं अगाध ज्ञान हतुं ए तेमना ते ग्रन्थ जोतां स्पष्ट जणाय छे. पण साहित्यना विषयमां तेमनो अगाध तलस्पर्शी प्रवेश हतो तेनुं भान तो 'समराईच्च कहा' करावे छे. 'अनेकांतजयपताका' जेवा कर्कश तर्कग्रन्थ गुंथनारा आवुं प्रसन्न अने रसमय सर्जन करी शके छे ए ख्याल समराईच्च कहा जातां आवे छे. आ कथानी उत्पत्तिनो सामान्य इतिहास एवो छे के पू. आ. श्री हरिभद्रसूरिजी म. ना बे भाणेजो हंस अने परमहंस नामना हता, तेओने दीक्षा आप्या बाद बौद्ध दर्शननां रहस्यभूत तत्त्वो जाणवा माटे बौद्धो पासे मोकल्या. वखत जतां वात खुल्ली पी गई के आ बन्ने जण आपणां रहस्यो जाणवा माटे आव्या छे. बन्ने जणा त्यांथी नासी छूट्या, बौद्धो पाछळ पड्या. छेवटे बन्नेनुं अकाळे अवसान थयुं. आ हकीकत आचार्यश्रीना जाणवामां आवतां तेमने पारावार क्रोध व्यापी गयो ने बधा बौद्धोने एक साथै कडाईमा कडकडता तेलमां तळी नाखवानो संकल्प कर्यो. आ संकल्पनी आचार्य श्रीना गुरुजीने जाण थतां तेमणे समरादित्य चरित्रना विपाकने समजावती केटलीक गाथाओ लखी मोकली. ते विचारतां आचार्यश्रीनो क्रोध शमी गयो. पोताना संकल्प माटे तेओ श्री पश्चात्ताप करवा लाग्या अने तेना प्रायश्चित्त तरीके १४४४ ग्रन्थनी रचना करवानो दृढ संकल्प कर्यो. पोताना आत्मघातक विचारोने शमन करनारी आ कथा तेओ श्रीना जीवननी एक मुख्य घटना बनी गई अने साहित्य सृष्टिमां शिरोमणि भावने धारण करती आ कथासृष्टिमां प्रगट थई. शिष्योनो विरह थयो ते प्रसंगने अनुलक्षी ग्रन्थने अंते 'विरह' एवं पद प्रायः त्यार पछी रचायेला तेओ श्रीना ग्रन्थमां मळे छे. आ 'समराईच्च कहा'ने अंते पण ए पद आ प्रमाणे छे. जं विरइऊण पुण्णं, महाणुभावचरियं मए पत्तं । तेण इहं भवविरहो, होउ सया भवियलोयस्स ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525295
Book TitleShrutsagar 2014 11 Volume 01 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy