________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संपादकीय
हिरेन के. दोशी श्रुतसागरनो पांचमो अंक आपश्रीना हाथमां छे.
आम तो आ अंक विशेषांक रूपे अर्थात् ऐंशी पेजनो आपवा भावना हती, पण आवता मासे केटलांक विशेष प्रसंगोथी अने केटलीक विशेष बाबतोने समावेश करवानी धारणा होवाथी आ अंकने सामान्य अंक रूपे ज आपश्रीनी समक्ष प्रकाशित कर्यो छे.
सद्गुणोनी आवरदा सद्वांचनथी लंबाय छे. सद्वांचन रूपी श्वासथी सद्गुणरूपी जीवन निराबाध रीते व्यतीत थाय छे.
सद्वांचन एटले जीवनने फूलनी जेम विकसतुं जोवु... सद्वांचन एटले निरांते जीवनना रसने माणवो... चित्तप्रदेशमां विचारो के कल्पनाना लागेला दवने जे ठारी आपे ए सद्वांचन...
वमळमाथी ज्यारे एम लागे के हवे बहार नीकळी शकाय एम नथी त्यारे खरेखर सारा पुस्तको आपणने बहार काढी आपता होय छे. एवं पश्चिमी लेखक- आ वाक्य खरेखर वाचननी महत्तानो उद्घोष करे छे. वीतेला समयनी स्मृतिना भारथी अने आगामी दिवसोनी कल्पनाथी थाकी गया होईए त्यारे सद्वांचननो महिमा समजाया वगर नहीं रहे... अस्तु... आ अंकनी वात :
गया अंकमां प्रकाशित वाक्संयम अंगे पूज्य गुरुभगवंतश्रीए आपेल प्रवचन आ अंकमां एज प्रवचननो आगळनो भाग प्रकाशित कर्यो छे. तो साथे साथे वाचकोनी मांगणीने अनुसार पूज्य गुरुभगवंतश्रीए आपेल प्रवचनोने गुजराती अने अंग्रेजी भाषामां पण प्रकाशित करवानुं प्रारंभ कर्यु छे.
ए साथे ज तारीख ५-४-१९३२ एटले ८५ वर्ष जूनो गौरवप्रद एक पत्र आ अंकमां प्रकाशित कर्यो छे. पत्रना लेखक जैनेतर होवा छतां, एमना हृदयमां स्थिर थयेली तत्त्वज्ञान प्रत्येनी श्रद्धा अने एक अप्रतिम निष्ठा अनुभवाया वगर नहि रहे. प्रस्तुत अंकना टाईटल पेज नंबर २ अने पेज नंबर ३ उपर मुखीसाहेबना हस्ताक्षरोमां लखायेलो पत्र प्रकाशित कर्यो छे. जे वाचको जोई शकशे.
For Private and Personal Use Only