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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR SEPTEMBER-2014 यह अनादिकाल का संस्कार है। ९९ प्रतिशत उसमें एकदम ह्वाइट पेपर है, सफेद कागज है। एक पर्सेन्ट यदि मैंने ब्लैक स्पोट कर दिया, काला निशान बना दिया, नजर उस काले निशान पर जायेगी। ९९ प्रतिशत जो निर्मल है, स्वच्छ है, वहाँ नजर नहीं जायेगी। यही हमारी आदत है, किसी व्यक्ति में हजार गुण हों, वहाँ हमारी दृष्टि नहीं जायेगी। परन्तु जहाँ जरा-सा भी दुर्गुण झलक जाये, हम झट वहीं पर दृष्टि टिका लेंगे। अपवाद या अवर्णवाद बोलकर अपनी जीभ गंदी करेंगे और तुरन्त पर-निन्दा के आश्रित बन जायेंगे। ____ योगी पुरुष ने कहा-'नेत्र साधु विलोकरहिते' इस आँख से कभी साधु पुरुषों का दर्शन ही नहीं किया, परदोष दर्शन में ही इसकी दृष्टि रही। अत: दृष्टि इसकी मलिन बनी रही। कभी प्रभु का दर्शन नहीं किया। विकार से भरी इसकी दृष्टि ने कभी अपने आप को नहीं देखा। यह हमेशा पर दृष्टि में रहा। लोग क्या करते हैं? यही देखने में जीवन चला गया। मेरे अन्तर जगत् में क्या है? यह देखने का प्रयास ही नहीं किया। अपने को देखने की दृष्टि प्राप्त नहीं की। दृष्टि निर्मल होनी चाहिये। परमात्मा ने कहा-गिद्ध दृष्टि चाहिये। गिद्ध की दृष्टि बहुत गहरी होती है। बहुत ऊँचाई से वह अपनी वस्तु को देख लेता है। उसी तरह से हमारे जीवन में दृष्टि होनी चाहिये। वर्तमान में रहकर भी मैं अपने परलोक को देख सकूँ। कल्पना कर सकूँ कि मेरा कार्य मुझे कहाँ पहुँचायेगा, किस प्रकार की मुझे गति मिलेगी? वर्तमान में इस प्रकार से देखना, यह दूरदृष्टि या गिद्ध दृष्टि है। सियार चुप रहा, परन्तु क्या करे, वह भूख से लाचार था। उसने कहा ‘भगवन्! और कुछ नहीं, कान खाँ, लूँ तो क्या है? कान ने क्या पाप किया है? छोटे-से कान यदि मैं भक्षण कर लूँ तो मुझे थोड़ी सी तृप्ति मिल जायेगी। मानसिक सन्तोष मुझे मिल जायेगा। 'सारश्रुतौ द्रोहिणी' योगी पुरुष ने गर्जना करके कहा-इस कान ने कभी भला श्रवण नहीं किया। पर-निन्दा का ही श्रवण किया है। जगत् की चर्चा का ही श्रवण किया है, कभी धर्म कथा या प्रवचन से इसने इस कान को पवित्र नहीं किया। ये कान खाने योग्य नहीं, तेरी बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी, तेरी सारी पवित्रता भी चली जाएगी, मेरा यह आदेश है, तू इसे खाने का विचार छोड़ दे। (क्रमश:...) For Private and Personal Use Only
SR No.525293
Book TitleShrutsagar 2014 09 Volume 01 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size5 MB
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