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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१४ देशों की खोज नहीं है वरन् जैन धर्म दर्शन में भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. आज जीवन प्रबन्धन शब्द हमें आधुनिक लगता है, किन्तु जैन धर्म दर्शन की परम्परा तो सम्यक् जीवनशैली की अनादिकाल से पोषक रही है, और इसी बात को पूज्यश्री ने समाज के समक्ष विस्तारपूर्वक उपस्थापित किया है. ___ जैनदर्शन केवल सिद्धांतवादी ही नहीं, अपितु प्रयोगवादी भी है. यह हमें जीवन जीने की सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक दोनों प्रकार की शिक्षा प्रदान करता है. जैन आचार मीमांसा में एक और व्यक्ति को आध्यात्मिक शिक्षा के माध्यम से आत्मोन्नति के शिखर तक पहुँचने की प्रेरणा दी गई तो दूसरी ओर व्यावहारिक शिक्षा के माध्यम से अपने वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन का संतुलित विकास करने की नीतियाँ भी निर्देशित की गई हैं. पूज्यश्री ने जैन आचारग्रन्थों का सम्यक् परिशोधन कर इसमें निहित प्रबन्धनसूत्रों को समाज के समक्ष उपस्थित करके पुनः प्रतिष्ठापित करने का सुन्दर प्रयास किया है. ___ “भौतिक और आर्थिक विकास यद्यपि जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं, फिर भी उनका सम्यक् प्रबन्धन तो नैतिक, धार्मिक तथा आध्यात्मिक जीवन मूल्यों पर ही आधारित होगा” पूज्यश्री का यह कथन न केवल पूर्णतया सत्य है, बल्कि यही भारतीय संस्कृति का सारभूत उद्घोष है. इस ग्रन्थ के स्वाध्याय से व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक जीवन प्रबन्धन की समुचित प्रेरणा प्राप्त होगी. जीवन प्रबन्धन विषय को अपने शोधकार्य का विषय बनाकर पूज्य मुनिश्री ने जिनशासन को एक बहुमूल्य कृति प्रदान की है. भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं श्रुतसेवा में समाज को उनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा ऐसी शुभेच्छा सहित कोटिशः वन्दन.
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