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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सितम्बर-२०१४ श्रुतसागर 23 जिस प्रकाशन, हस्तप्रत अथवा अंक में मिलती हो, उसकी सूचना वाचकों को उपलब्ध करायी जाती है. कृति का स्वरूप एवं उसकी रचनाशैली : किसी भी परंपरागत भारतीय कृति के प्रारम्भ में प्रायः मंगलाचरण होता है. मंगलाचरण में सामान्यतः कर्ता अपने इष्टदेव अथवा गुरु का स्मरण या उनके गुणों का संकीर्तन करता है. कोई कृति सर्ग, अध्याय, अध्ययन, परिच्छेद आदि परिमाणों में विभक्त उपविभक्त होती हैं, तो कोई सम्पूर्ण अविभाजित कृति होती है. कुछ पद्यबद्ध कृतियों में श्लोकों, गाथाओं या सूत्रों का एक निश्चित अनुक्रम होता है, जो कृति के प्रारम्भ से अंत तक एक समान चलता है, जबकि कुछ कृतियों में प्रत्येक सर्ग, अध्याय आदि के बाद यह क्रम बदल जाता है अर्थात् पुनः एक से प्रारम्भ होता है. जबकि गद्यबद्ध कृतियों में श्लोक, गाथादि नहीं होते, मात्र सर्ग, अध्याय, अध्ययन आदि होते हैं. कभी-कभी कृति के अध्याय / अध्ययन आदि के अपने स्वतन्त्र नाम भी होते हैं. उदाहरण के लिए - दशवैकालिकसूत्र के प्रथम अध्ययन का नाम द्रुमपुष्पिका अध्ययन है, द्वितीय अध्ययन का नाम श्रामण्यपूर्विक अध्ययन है. परन्तु तत्त्वार्थाधिगमसूत्र में प्रथम अध्याय, द्वितीय अध्याय आदि है, किसी भी अध्याय का कोई नाम नहीं है. कृति की रचनाशैली अनेक प्रकार की होती है, जैसे- महाकाव्य, नाटक, सूल, चंपू, सट्टक, स्तोत्र, स्तव, रास, ढाल, चौपाई, छंद, सज्झाय, स्तवन, स्तुति, चैत्यवंदन, पद, धवल, झूलणा, झीलणा, हरियाली इत्यादि. इसप्रकार की रचनाशैली प्रायः मूल कृति में पाई जाती है, जो टीकादि स्वरूप से भिन्न होती है. कृति के अन्त में प्रायः रचना प्रशस्ति हुआ करती है. कभी-कभी कृति के प्रत्येक अध्याय आदि के अन्त में भी रचना प्रशस्ति होती है, जिसके अन्तर्गत कर्त्ता का विस्तृत परिचय, उसकी गुरु-परंपरादि का परिचय, कृति का रचनास्थल, रचनावर्ष आदि का उल्लेख होता है. कभी-कभी कृति के प्रारंभ में भी कर्ता द्वारा अपने वंश, गुरु आदि का परिचय प्रस्तुत् किया जाता है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के लायब्रेरी प्रोग्राम की विशिष्टता : यहाँ के कम्प्युटरीकृत लाइब्रेरी प्रोग्राम की विशिष्टता यह है कि यहाँ आनेवाले विद्वानों, संशोधकों तथा वाचकों को इसके माध्यम से किसी भी कृति की सम्पूर्ण For Private and Personal Use Only
SR No.525293
Book TitleShrutsagar 2014 09 Volume 01 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size5 MB
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