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संपादकीय श्रुतसागरनो तीजो अंक आपश्रीना हाथमा छे.
दर वखतनी जेम आ अंकमां पूज्य गुरुभगवंतश्रीए वाणी विशे अपायेल मननीय प्रवचन आ पत्रिकाना माध्यमे प्रकाशित कर्यु छे. वाणीना उपयोग अने दुरुपयोगनी विगते वात करीने पूज्यश्रीए आत्मसाधनानो मार्मिक उपाय जणाव्यो छे. ___पार्श्वचंद्रसूरि महाराज द्वारा रचित दश ब्रह्मचर्य समाधिस्थान कुलक आ अंकमां प्रकाशित कर्यु छे. कर्ता अने कृतिनो विषय बन्ने सारी रीते परिचित होवाथी प्रस्तावनामां महत्त्वना अंशोने स्थान आप्यु छे. लिपि विषयक लेखो अने एनी माहितीओ वाचकोने उपयोगी थता ए ज श्रेणिमा लिपि साथे भाषानो योग्य समन्वय अने संबंध दर्शावतो 'भाषा और लिपि एक समीक्षात्मक अध्ययन' नामनो लेख असे प्रकाशित कर्यो छे. लिपि के भाषाना खास अभ्यासु वाचको ज नहीं पण दरेक वाचक आ लेखथी काळना फलक उपर भाषा अने लिपिना योगदान अने संबंधनुं महत्त्व समजी शकशे.
योगनिष्ठ प. पू. आ. गुरुदेवश्री बुद्धिसागरसूरिश्वरजी म. सा.न आचार्यपदनुं शताब्दिवर्ष अत्यारे प्रवर्तमान छे त्यारे पू. बुद्धिसागरसूरिश्वरजी म. सा.नी जीवन अने कवननो विस्तारथी परिचय करावतो लेख असे प्रकाशित कर्यो छे. आ ज श्रेणिमां आगामी लेखो एमना सर्जन अने साधना विशेना रहेशे.
पू. बुद्धिसागरसूरिजी म. सा. ना समुदायतुं चातुर्मासिक सूचिपत्र आ साथे प्रकाशित कर्यु छे. तो दर वखतनी जेम आ अंकमां जुना मेगेझिनमांथी कोई लेख प्रकाशित कर्यो नथी. एक वात श्रुतसागरनी :
आ पत्रिका तमारी छे अने तमारा थकी ज आ पत्रिकानुं प्रकाशन छे. एटले आपश्री आ पत्रिकामा लेख/कृति विगेरे पाठवी शको छो अने पाठवशो. साथे साथे आ पलिकाना स्तर अने ध्येयने विकसाववा आपश्री पोताना अभिप्राय/सझाव विगेरे निःसंकोच शहेर शाखा कार्यालय (प्राप्तिस्थान एड्रेस) उपर मोकली शको छो. एक वात पुस्तकालयनी :
आपश्री ज्ञानमंदिरना वाचक होय अने आपश्रीन अभ्यासकार्य पूर्ण थया बाद आपश्री पासे आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबाचें कोई पुस्तक के प्रत विगेरे होय तो वहेली तके ज्ञानमंदिरमां जमा करावशोजी. जेथी अन्य वाचकोने श्रुतनो अंतराय न थाय अने अन्य वाचक पण आपनी जेम पुस्तकथी लाभान्वित थाय. पुस्तको जमा कराववा माटे अमारी शहेर शाखा कार्यालय (प्राप्तिस्थान एड्रेस) उपर मोकली शकाशे.
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