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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 73 श्रुतसागर जुलाई - २०१४ ज्ञानद्रव्य खाधो हुवै । पुरतक प्रमुख वेच्या हुवै । सूक्ष्म अर्थ सरदह्या न हुवै। इत्यादि प्रकार तरी ज्ञान विराधना (जाणतां अजाणतां) इणभव परभव जातां (जाणतां अजाणतां) ते मिच्छामि दुक्कडं ।।१।। हिवै दर्शनना आठ अतिचार ते किम? देवगुरु 'धर्मने विषै संका कीधी हुवै ||१|| अन्य अन्य दर्शनां ऊपर अभलाषा वांछा कीधी हुवै ।।२। साधु साध्वीनी दुगंछा कीधी हुवै ।।३।। सर्व देव, सर्व गुरु, सर्व धर्म सरीखा मान्या हुवै ।।४।। साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका गुणवंत चतुर्विध श्री संधनी प्रसंसा न कीधी हुवै ।।५।। सीदाता साधर्मी साहमीनें द्रव्यत भावत स्थिरता न कीधी हवै ।।६ || साधर्गिक साधुनी भक्तवत्सलता कीधी न हुवै ।।७।। श्री जिनशासण तणी प्रभावना उद्दीपना न कीधी हुवै ।।८।। इत्यादिक प्रकार करी दर्शननी विराधना कीधी हुवै इणभव परभव जात(जाणतां अजाणतां) ते मिच्छामि दुक्कडं ।।२।। हिवै चारित्रना आठ अतिचार लागा हुवै ते किम? इर्यासमति' भाषासमति' एषणासमति' आदांनभंड-निखेवणारामति' उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाण पारठावणीयासमति गनोगुप्ति ववनगुप्ति' कायगुप्ति एवं पांच सुमति(समति) त्रीणि गुप्ति विराची हुबै । इणभव परभव जातां (जाणता अजाणतां) ते मिच्छामि दुक्कडं ।।३।। वली उभयकाल पडिकमणो कीधो न हुवै। अथवा कालवेला टाली अकालै कीधो हुवै। अथवा छती सत्तें बैठां पडिकमणो कीधो हुवै। वांदणा बारह आवर्त्त भली परै साचव्या न हुवै । प्रभातनो पडिकमणो आगासै कीधो हुवै । पडिकमणांमांहे निद्रा विकथा कीधी हुवै । दिवरामाहै पांच बार सिल्झाय ध्यान न कीधो हुवै। अहोरात्रगांहे सात पार चैत्यवंदन न कीधा हुवै। पच्चखाण पार्या न हुवै] पउण पडिलेहण आघीपाछी कीधी हुवै । ओधा, मुंहपत्ती, वस्त्रपात्र पडलेह्या न हुवै । सांझे बारह १२ बाहिर. बारह १२ मांहे, एवं २४ थंडला, च्यार कालग्रहणना मंडल एवं २८ मांडला कीधा न हुवै। राइ संथारा मुंहपती डिलेही न हुवै। आवरराहि निस्सिहि प्रमुख दसविध चक्रवाल समाचारी साचवी नहीं हुवै। सूत्रपोरसी, अर्थपोरसी साचवी नहीं हुवै। कारण विना दिवस निद्रा कीधी हुवे। रात्रे पोहर उपरंत निद्रा कीधी हुवे। राइ प्रायश्चित न कीधो हुवै। थापना पडिलेहवी वीसर गइ हुवै । थांनक बै(पै)सतां 'अणुजाणह जस्सवग्गहो होइ त्ति' एहईं वचन न कहयुं हुवै। रात्रे अकाले थंडलै गयो हुवै । कालातीत, क्षेत्रातीत अनपाणी प्रमुख भोगव्या हुवै। For Private and Personal Use Only
SR No.525291
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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