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JULY-2014
SHRUTSAGAR ग्रंथ-लिपिवद्ध एक शिलालेख
Dhave phraigrai
प्राचीन भारतीय श्रुतपरंपरा को जीवित रखने में इस लिपि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। दक्षिण भारत के अनेकों राजवंशों का इतिहास ग्रंथ-लिपिवद्ध पुरालेखों के आधार पर ही रचा गया है। आज इस लिपि का पठन-पाठन पूर्णतः लुप्त हो चुका है। और इस लिपि के जानने वाले भी गिने-चुने ही रह गये हैं। जबकि इस लिपि में संरक्षित प्राचीन साहित्य हमें प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो रहा है। विदित हो कि इस लिपि का चलन तो विशेषकर दक्षिण भारत में रहा लेकिन इसमें निवद्ध साहित्य हिंदुस्तान के समस्त भण्डारों में मिल जाता
है। आज हिंदुस्तान का शायद ही कोई ऐसा ग्रंथागार होगा जिसमें ग्रंथ-लिपिवद्ध साहित्य रांगृहीत न हो। इससे पता चल जाता है कि यह लिपि अपने समय में कितनी अधिक प्रचलिज और प्रामाणिक रही होगी।
यद्यपि राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन-नई दिल्ली द्वारा भारत के विविध शिक्षाकेन्द्रों में समय-समय पर आयोजित होनेवाली 'पाण्डुलिपि एवं पुरालिपि अध्ययन कार्यशालाओं' के माध्यम से इस लिपि को जीवित रखने के प्रयास किये जा रहे हैं, जो सराहनीय हैं। लेकिन इस क्षेत्र में यदि और भी शिक्षण संस्थाएँ एवं समाजसेवी विद्वान् आगे आये तो भारतीय श्रुतपरंपरा को सदियों तक जीवित रखनेवाली इस पुरातन धरोहर को लुप्त होने से बचाया जा सकता है।
अस्तु हमने यहाँ ग्रंथ लिपि का किंचित् परिचय प्रस्तुत् करने का प्रयास किया है। आशा है विद्वान् गवेषक इस प्राचीन भारतीय धरोहर को युग-युगान्तरों तक जीवित रखते हुए आगे आनेवाली पीढियों तक सुरक्षित पहुँचाने का प्रयास करेंगे। धन्यवाद!!
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