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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 25 जुलाई - २०१४ ते कोतिक कुगरी देखती, वइंरागिणि हूई गुणवती। कर्म राणा गल सवि धोयती, केवल पामी आठइं सती ।।३७ ।। चरकन्या केवल सुर कहई, जे देखी सह मनि गहगहइं। मातपिता उपनो वइंराग, मोहतणो तेणे कीधो त्याग ।।३८ ।। भावई चढ्या आयुं शुभध्यान, ते पणि पाम्या केवलज्ञान । सकल कर्मनो आणी अंत, ते सतावीस थया भगवंत ।।३९ ।। वइंटो कनक कमलि केवली, रायराणा चंदई वली-वली। जे पूछई मनना संदेह, गुणसागर कहइं उत्तर तेह ।।४०।। बइंठो दीठो हुं सभा मझारि, केवली बोलाव्यो तिणि वार(रि)। सारथपति सांभ ले जे कहुं, 'तुं जाणई छई जाउ कई रहुं ।।४१ ।। ए कुतिग जोवा तुम भाव, तु उवझापुरी जाओ मान भाव | कुतिग दीखें इहा जेहएं, तिहां राजभुवनि देखशो तेहबुं ।।४२।। एह वचन निसुयां भई तिहां, कुतिग जोवा आव्यो इहां । पूछी तुहाो अपूरववात, तो मई को एह अवदास ।।४३ ।। ढाल। वइंठो सिंघासण सजीओ मनमोहन, पृथिवीचंद्र पविः लाल गनगोहर | सारथपति पासई सुणइं मनमोहन, गुणसागर चरित्र लाल मनमोहन ।।।४४ ।। गुणवंराना गुण सांभली मनमोहन, उलट अंगि • माय लाल मनमोहन । करई प्रसंशा ते घणी मनमोहन, धन धन ए रुषिराय लाल मनमोहन ।।४५ ।। अहो ! एहनुं मनदृढपणु मनमोहन, अहो ! एहनो वइंराग लाल मनमोहन । मांहिं रइं केवल लही मनमोहन, साधिओ शिवपुरमाग लाल मनमोहन ।।४६ ।। धन ते आठ अंतउरी मनमोहन, धन जननी धन तात लाल मनमोहन । For Private and Personal Use Only
SR No.525291
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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