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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 22 JULY-2014 रामचंद्र जब वनि संचर्या, सीता लक्ष्मणस्युं परवर्या । गुरुवंदन करवा पनि गया, तब गुरु टलीनइं अलगा थया ।।९८ ।। पुनरपि रावण जीत करी, आव्या तिहां जयलक्ष्मी वरी। तब गुरु ऊठी साहना वहइं, रामचंद्र पगि लागी कहई ।।९९!! रामचंद्र उवाच स एवाऽहं स एव त्वं, तदेव कदलीवनं। गमनावसरे नाभूत, सांप्रतं तु किमादरः ।।१००।। गुरुवाच धनमर्जयकाऊस्थ(?), धनं मूलमिदं जगत्। अंतर नैव पश्यामि, निर्धनस्य मृतस्य च ।।१।। ॥ चोपई। धनवंतनइं कुलवंत सहु कहइं, पंडित पदवी धनवंत लहई। सगा-रागप्प(प)ण धन बलि थाय, धनवंत ते गुणवंत कहवाय ।।२।। हवइं ते सेठ छइं धननो धणी, रतनराशि तेहनई छई घणी। तस घरि नारि सुमंगला सती, कंत तणइं ते मनिभावती ||३!! गुणसागर नामई तास पुत्र, जाणइ धर्म कला तणइं सूत्र। यौवनवय पाम्यो ते सार, कन्या आठ जोई तेणी वार ||४|| तात वेवाही धरि उछाह, वारू६ केलवीइं२७ विवाह । मिली सवि अभरी अनुसारि, धवल-मंगल ते गाइं नारि ।।५।। ईणइं अवसरि गुणसागरकुमार, विचरई नगरमाहिं जिम अमर । मधुकरी करता दीठा यती, जेहनई पाप न लागइं रती ।।६ | ! तस दरिसन दीठाथी ठयों, लही जातिनइं भव सांभर्यो। आप काज करवानुं ध्यान, अंतरंग तस ऊघड्या कान ७ ।। थई वइरागी घरि आवीओ, मातपितानई मनि भावीओ। पाय लागीनइं मागई मान, मुझनई आपो संयमदान ||८|| चलतु मातपिता कहइं अस्युं, ताहरइं मनि एव॒स्युं वस्यु। आ अवसर छइं विवाह तणो, अह्म मनि उलट छइं अतिघणो ।।९।। For Private and Personal Use Only
SR No.525291
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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