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फागुबंध काव्यनुं स्वरूप अने नारीनिरास फागना कर्ता'
पं. अंबालाल प्रेमचंद शाह गुजरातनी साहित्य संपत्ति वधारवामां जैन कविओनो फाळो मुख्य छे. तेमनुं ऋण गूजरात कदी भूली शके एम नथी. ते साहित्य-रत्नोने संग्रही राखता जैन भंडारोमा प्राचीन गूजराती भाषामां रचायेला विविध प्रकारनां काव्यो तो थोकबंध मळी आवे छे. तेमां रासा, फागु, विवाहलो, बारमासा, संधि, हरियाली, स्वाध्याय अने स्तुति-स्तोत्रो जेवां नाना प्रकारनां गीतो पण होय छे.छता हरेकमां भिन्न भिन्न स्वरूपनी एक शैली अवश्य होय छे. अहीं हुं प्रस्तुत फागु काव्यना संशोधन अंगे, फागुबंध काव्यना स्वरूप संबंधे, कंईक आलेखवा धारुं छु.
'जैन सत्य प्रकाश'ना वर्ष ११ना छठ्ठा अंकमां 'आपणां 'फागु' काव्यो' अने वर्ष ११ना ७मा अंकमां 'आपणां 'फागु' काव्यो संबंधमां थोडी सूचना' ए शीर्षक हेठळ प्रो. हीरालाल कापडिया अने पं. लालचंद भ. गांधीए क्रमशः विवेचनो आपेलां छे, पण तेगांथी के बीजेथी पण 'फागु' काव्यना स्वरूप संबंधे कशुं जाणवा मळतुं नथी.
"फागु काव्यो'नां जेटलां प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध नामो मळी आवे छे तेनी एक लांबी यादी श्री कापडियाए आपी छे. तेनी अनुपूर्ति रूपे पं. लालचंदभाई ए तेम ज श्री अगरचंदजी नाहटाए पण तेमां केटलांक नामो उमेर्यां छे. प्रकाशित थयेलां 'फागुकाव्यो' उपर दृष्टि नांखतां तेमां एक शैली विशेष तरत जणाई आवे छे. ए जोतां एना स्वरूप संबंधे एवो निर्णय करी शकाय के 'फागु' ए गीत, छंद के काव्यनुं नाम नथी, पण फागु शब्दालंकारवाची अनुप्रासात्मक होय एम जणाय छे. संस्कृतमा जेम यमकबंध अनुप्रासगय काव्य होय छे तेने ज भाषामा 'फागबंध' कही शकाय. फागमा ४८ मात्रानो दोहा छंद ज होय छे. एटले प्रथम अने त्रीजा
* श्रुतसागर अं. नं. ३५मां पं. नंदिरत्नगणिना शिष्य पंडित रत्नमंडन गणि कृत दान विषयक
मेघवाहननृप कथा प्रकाशित थई हती. विद्वानोने माहिती प्राप्त थाय ए हेतुसर एनी प्रस्तावना विगेरेमा मेघवाहन राजानी कथाना कर्ता विशे विचार विमर्श रजु करायेल. ए बावते वधु प्रकाश पाडता वे लेखो ई. स. १९४७ना वर्षमां जैन सत्यप्रकाशना माध्यमे प्रकाशित थयेला. आम तो आ लेखो अमारे ते कथानी साथे ज प्रकाशित करवानी भावना हती. परंतु स्थानाभावे आ विमर्शने प्रकाशित करवू शक्य न बन्यु. अत्रे यथावत् प्रकाशित करेल पं. रत्नमंडन गणि विशे पंडितवर्य श्री अंबालालमाई अने पंडितवर्य श्री लालचंदजी बच्चे थयेला विचार विमर्श वाचकोने अवश्यमेव उपयोगी बनशे. ए आशा अस्थाने नथी.
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