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आचार्य श्रीमलयगिरि अने तेनुं शब्दानुशासन'
मुनि श्री पुण्यविजयजी आगमदुर्गमपदसंशयादितापो विलीयते विदुषाम्।। यद्वचनचन्दनरसैर्मलयगिरिः स जयति यथार्थः ।।
आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिसूरिः ।। प्रस्तुत संक्षिप्त लेखमां आगमज्ञमुकुटमणि समर्थ टीकाकार आचार्य श्रीमलयगिरिकृत शब्दानुशासन-व्याकरणनो परिचय कराववामां आवे छे. आ. श्रीमलयगिरिए संख्याबंध, जैन आगमो, प्रकरणो अने ग्रंथो उपर टीकाओनी रचना करी छे; परंतु तेमनी जो स्वतंत्र ग्रंथरचना कोइ होय तो ते मात्र प्रस्तुत स्वोपज्ञवृत्तिसहित शब्दानुशासन ग्रंथ ज छे.
श्रीमलयगिरिसूरि, कलिकालसर्वज्ञ भगवान् श्रीहेमचंद्राचार्यना विद्यासाधन समयना सहचर हता. तेमना प्रत्ये तेओश्रीनुं एटलुं बहुमान हतुं के तेमणे पोतानी आवश्यकसूत्र उपरनी वृत्तिमां भगवान् श्रीहेमचंद्रने तथा चाहुः स्तुतिषु गुरवः (आव. वृत्ति पत्र ११) ए शब्दोथी गुरु तरीकेना हार्दिक प्रेमथी संबोध्या छे.
___ आ. श्रीमलयगिरिए मलयगिरिशब्दानुशासननी रचना करवा छतां आपणे तेओश्रीने आ. श्रीहेमचंद्रनी जेम वैयाकरणावार्य तरीके संबोधी के ओळखावी शकीए तेम नथी. ए रीते तो आपणे तेओश्रीने जैन परिभाषा प्रमाणे आगमिक के सैद्धांतिक युगप्रधान आचार्य तरीके ओळखावीए ए ज वधारे गौरवरूप अने घटमान वस्तु छे. सिद्धांतसागरमां रात दिवस झीलनार ए महापुरुषे व्याकरणना जेवा क्लिष्ट अने विषम विषयने हाथमां धर्यो ए हकीकत हर कोईने मुग्ध करी दे तेवी ज छे.
समर्थ वैयाकरणाचार्य भगवान् श्रीहेमचंद्रे जे जमानामां सांगोपांग सपादलक्ष शब्दानुशासन व्याकरणग्रंथनी रचना करी होय ए ज जमानामां अने ए समर्थ व्याकरणनी रचना थई गया बाद तरतमां ज आचार्य श्रीमलयगिरि नवीन शब्दानुशासन ग्रंथना निर्माण माटे प्रयत्न करे के हिंमत करे ए वात प्रथम दृष्टिए आपणने संकोचकारक तो जरूर लागे छे; तेम छतां आपणने आथी एक एवं अनुमान करवानुं कारण मळे छे के आ. श्रीमलयगिरिए, भ. हेमचंद्र जेवा पोताना मुरब्बीना सर्वतोमुखी पांडित्यथी मुग्ध थई अने कुतूहलवृत्तिथी प्रेराईने आ शब्दानुशासनग्रंथनी रचना करी हशे; अथवा तेओश्रीना जीवनमां जरूर कोई एवं प्रेरणादायी कारण उत्पन्न थयुं हशे जेथी प्रेराईने * प्रायः करीने आ व्याकरण हजु सुधी अप्रकाशित छे.
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