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श्रुतसागर - ३८-३९
नीर सरोवर निसरयां रे, थयो हवें मार्गे सुधि लाल केज्यो संदेस्यो। अवसर आव्यानो ए थयो रे, रहि हुं आस विलूधी लाल केज्यो संदेस्यो ।।३।। नवसत भूषण सज करी रे, प्रीतम पंथनें जोती लाल केज्यो संदेस्यो। कहे अगृत करुण करी रे, राजुल कीजें पनोती लाल केज्यो संदेस्यो ।।४।।
मास : १२
कार्ति(क)इं मासि ते कामनी रे, राती ताती थइ संगे लाल | आतिमरामनी रोवना रे, नीरखी मुझ मन उलसें रे, प्रीतम सेवामें रंगे लाल आतिमरामनी
119 एहवा गुंणीइ संदेसडा रे, प्रीय नेमीश्वर भासी लाल । बाधक कारण जिहां नहीं रे, भोग्य अनंतविलासी लाल ।।२।।
आतिमरामनी सेवना रे... साधक साधनता वरेरे, अक्षयअक्रीडवासो लाल। परगानंद जिहां नहीं रे, नहि विकल्प प्रयासो लाल
।।३।।
आतिमरामनी सेवना रे... वरतु स्वरूप स्वभावथी रे, देखी निज परधान लाल । रोह मंदिरमांहिं आवज्यो रे, मलसूं तल एकतांने लाल
||४||
आतिमरामनी सेवना रे... नेम राजुल बीहं मली रे, पाम्यां सुख अनंता लाल। सुधातम गुंण नीपना रे, निज निज पद विलसंता लाल
आतिमरामनी सेवना रे...
सीलंग रथ काउसगना रे, भेदथी वर्ष गणज्यो लाल। एह वीवेक संदेसडो रे, कहें अमृत नीत भणज्यो लाल
||६|| आतिमरामनी सेवना रे....
।। इति श्री नेम-राजुल द्वादसमास समाप्त || संवत १८७४ना वर्षे आसाढ वदि - १३ दिने लिपीकृतं
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