SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - ३८-३९ २१ एह विनंति चित्त हजुरजी, लहें चतुर अमृत रसपूरजी। नवि वीती हसें तस दुर जी, स्यूं जाणे मुरख भुरजी घर आची नेम ।।३।। मास :६ |१|| वैशाखें पाकी द्राषजी, अति पाकी आंबा साखजी। खंड करी आफू अभिलाषजी, प्राणेसर रस भरी चाखोजी करुणा करी नेम एकवार, मंदिर आवो घणुं स्युं कहिइं। नव भवनो प्रेम किम करी, चूकावो चतुर चित्त लहिइं. उत्तगना तेम छे प्यारजी, जलमां जिम तेलनी धार जी। आथमति छांहडी सारजी, ते तो वड जेटले विस्तार जी बालकवय भणवा जोगजी, जोवन वयें विलसें भोग जी। वृद्धपणे पालें जोगजी, कहें अमृत अचल अमोधजी || नंद कुंयर वर नानडीआ ए देशी ।। |२|| ||३11 मास : ७ लावा ||१|| हवें जेठे भेठी थइ छाहिं, आ अलगी वलगी बांहिं हो। समुद्रविजय सुत सामलीआ, आरांम अनोपम वन जईइ, उछाहिं रमीई वीसमीइं हो, प्राणजीवन वर पातिलीया भरीओ सीतल खंडोखलीओ, मांहि सुरभी कुसुम रंगे भलिओ हो। उपगारी आवी इहां झीलो, राणी राजुलनां दुःख पीलो हो ।२।। अति झाझुंस्युं रे कहावो, सुं माननीने तरसावो हो । चतुर कलीत अवसर परखो, भरी अमृत निजरे निरखो हो ।।३।। मास :८ आ असाढ चढ्यो आवी, चिहुं दिशें घनघोर मचावी हो। वीरह न वधारो नाहलीआ, मंदिर आवो सीवादेवी नंदना (आंचली) कां थाओ कठोर ते मननाहो, तुम विण न गमे नाहलीआ गयण धडूके वरसें धारा, आ दादुरमोर किंगारा हो। झवझब झबके चपला चमकारा, आ अबलाने कौंण आधारा हो ||१|| |२|| For Private and Personal Use Only
SR No.525288
Book TitleShrutsagar Ank 038 039
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy