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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृतविजयजी कृत नेम-राजुल बारमासा ||१|| ।। ढाळ : गधुकर माधवनें कहेग्यो ए देशी ।। जदुपति जान लेइ आव्या, राजिमति चित्तमां भाव्यां । सुंणी पसु पोकार पीउ नाव्या रे, एह संदेशो जई केज्यो तोरणथी रथने व्याल्यो, स्यो अवगुण मुझमां भाल्यो।। अडभवनो प्रेम न किम पाल्यो रे, एह संदेशो जई केज्यो प्रीत उत्तमनी इम लहिइं, निज मेलावो निरवहिइं। घरि आवीने कहो किम जईइ एह संदेशो जई केज्यो |२|| ।।३।। मास :१ ||४|| माननी मन मृगशिर मासे, प्राण रह्या प्रीतम पासे। कहो किम रहेंवाइ ए घरवासें? एह संदेशो जई केज्यो छटकी छेह इंम नवी दीजें, फुदि परें किम कुदीजें । अबलासुं एहवू नवि कीजें रे, एह संदेशो जई केज्यो एवडी दुहवणसुं राखो, दोष होइं ते मझ दाखो। घरि आवि अमृत रस चाखो रे, एह संदेशो जई केज्यो ||५|| ।६।। मास : २ ।।१।। ||२|| पोसें रोस करो स्यानें, निगण निहाजा नवि माने । समझावो तम स्यूं हठ ताणें रे, सुगुण संदेशो जइ कहेज्यो ए दिन काया पोसीइ, तप करी तनू नवि सोसीइ। आ अवसर आवी घरि वसीइं रे, सुगुण संदेशो जइ कहेज्यो कामनी कंथ करें केली, रंगसुरंगा रस भेली। ते टांणे वसीइं जई वनवेली रे. सुगुण संदेशो जइ कहेज्यो नाह निठुर मेली वासें, कहें अमृत हवे कुंण पासें। आ अबलानी सी गति थासें रे, सुगुण संदेशो जइ कहेज्यो |३|| ।।४।। For Private and Personal Use Only
SR No.525288
Book TitleShrutsagar Ank 038 039
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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