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नटरागमां लोगस्सभावनुं स्तवन
मुनिश्री सुयशचंद्रवि. पूर्वाचार्योए बाळजीवोना बोधने माटे पूर्वोमांथी आगमोमाथी सारभूत पदार्थो उद्धरी प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंशादि भाषाओमां प्रकरणग्रंथो, जीवनचरित्रो. कुलको तथा अन्य पण स्तोत्रादि साहित्यनी रचनाओ करी.
समय जता ते प्राचीन भाषाओनो बोध पण दुष्कर थइ गयो त्यारे पश्चातकालीन विद्वानोए पूर्वाचार्य रचित सूत्रादिनुं अध्ययन सुलभ बनाववा माटे प्रादेशिक भाषाओमां सरळताथी ग्रहण करी शकाय तेवू गेयकाव्यप्रकारवाळु चोपाइ, रास, छंद विगेरे साहित्य रचवा मांड्यु. तेमां य खास करीने अन्य दर्शनना भक्तिमार्ग तरफ वळी जता बाळमानसने जैनदर्शनमा स्थिर करवा माटे आवा प्रकारनी रचनाओ वध उपकारक थइ. तेथी ज १३मी सदीथी लइने १९मी सदी सुधीना समयकाळमां आवी अनेक मध्यकालीन भाषाओमां रचनाओ रचाइ.
प्रस्तुत कृति पण उपरोक्त काव्य प्रकारनी रचना छे. लोगस्ससूत्रना भावोने अहिं कविए ‘नट रागना बंधारणमां (माळखामां) खूब ज सुंदर रीते रजू कर्या छे. कृतिना शरूआतना पद्यमां कविए जिनगुणस्तवनारूप पोतार्नु प्रयोजन निर्देश्युं छे. त्यार पछीनी सात गाथाओमां लोगस्ससूत्रनो भावानुवाद रजू को छे. नवमी गाथामां जिनगुणस्तवनानुं फळ तेमज १०मी गाथामां कृतिरचना संबंधी केटलीक हकीकतो रजू करी छे. कृतिकार कोण छे तेनो काव्यमां कशो ज उल्लेख नथी. परंतु प्रतालेखनपुष्पिकामां मळतो समय निर्देश अने कृतिमां मळता रचनासमयना आधारे केटलीक विगतोमा साम्यता देखाती होई कृतिकार ऋ. रणछोड के तेमनी ज परंपराना अन्य कोई ऋषि हशे एम विचार स्फुरे छे.
कृतिनां रचनावर्षमा अने हस्तप्रतनां लेखनवर्षमा समानता होवानी साथेसाथे कृतिनी रचना ए ज वर्षना महा वदि तेरसना वेरावळमां थई छे, तो हस्तप्रतनुं लेखन ए ज वर्षना अषाढ महिनानी सुदि बीजना वेरावळमां थयुं छे. एक ज वर्षमा, एक ज नगरमां, अने हस्तप्रत लेखन अने कृतिरचना वच्चे पण बहु वधु समय न होवाथी कर्ता द्वारा के एमनी परंपराना कोई ऋषि ज आ कृतिना कर्ता होवा मन ललचाय छे.
आ अंगे योग्य तपास कराय तो विशेष विगतो जाणवा मळे. संपादनार्थे प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रत आपवा बदल आचार्य श्री नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरि ज्ञानमंदिर (सूरत)ना व्यवस्थापक श्रीनो खूब खूब आभार.
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