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श्रुतसागर - ३५
[C] दान आपनारना भावने आश्रयीने -
श्री स्थानाङ्गसूत्र, धर्मरत्नप्रकरण, उपदेशतरङ्गिणी, दानादिकुलक वगेरे ग्रंथमां दानना जे प्रकार बताव्या छे ते जोता ते दातारना भावने आश्रयीने कह्या होय तेवुं लागे छे. जेना नाम अर्थ नीचे मुजब छे.
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स्थानांगसूत्र- [ १० प्रकार ] - [१] अनुकंपादान, [२] संग्रहदान, [३] अभयदान, [४] कारुणिकदान, [५] लज्जादान [६] गारवदान, [७] अधर्मदान, [८] धर्मदान, [९] करिष्यतिदान, [१०] कृतदान
दानादिकुलक - [ ३ प्रकार] [१] धर्मदान, [२] अर्थदान [३] कामदान. उपदेशतरंगिणी - [५ प्रकार] [१] अभयदान, [२] सुपात्रदान, [३] अनुकंपादान, [४] उचितदान, [५] कीर्तिदान.
दानोपदेशमाला - A १५ प्रकार] [१] सुपात्रदान [२] उचितदान [३] अनुकंपादान [४] अभयदान [५] ज्ञानदान तेमज
B [३ प्रकार ] [१] सात्विकदान [२] राजसदान [३] तामसदान. धर्मरत्नप्रकरण - [ ३ प्रकार) [१] अभयदान [२] धर्मोपग्रहदान [३] ज्ञानदान दान प्रकारोना अर्थो :
[१] अनुकंपादान - रांक, अनाथ, दरिद्र, कष्टने पामेल, रोगथी हणायेल अने शोकथी हळायेल एवा पुरुषने कृपाना अर्थथी जे देवाय ते अनुकंपादान कहेवाय छे.
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[२] संग्रहदान - उत्कर्षमां के कष्टमां जे कांई सहाय करवाना भावथी दान अपाय ते संग्रहदान.
[३] भयदान
राजा, कोटवाल, पुरोहित, मधुमुख, [ मल्ल] अने दंडपाशी [ थोडा अपराधमां भारे शिक्षा करनार एवा पुरुषाने विषे भयने लइने जे दान अपाय ते भयदान.
[४] कारुणिकदान- शोकथी अर्थात् पुत्र [ वगेरेना ] वियोगथी उत्पन्न थयेला शोकथी ते पुत्रादि भवांतरमां सुखी थाओ एवी वासांनाथी तेनी ज शय्या वगेरेनुं दान अथवा बीजी वस्तुओनुं दान ते कारुण्यदान.
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[५] लज्जादान - लोकना समूहनी अंदर रहेल पुरुषने बीजाए याचना करी त्यारे बीजा लोकोना चित्तनी रक्षा माटे जे दान आपवुं ते दान लज्जादान कहेवाय. [६] गारवदान - नट, नर्तक, मल्ल वगेरे, संबंधी, बंधु मित्रने जे यशने माटे