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अक्तूबर • २०१३ प्रतिपादित सिद्धांतों का पालन एवं उनके विचारों का प्रचार-प्रसार हो, यही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिए. उन्होंने कहा कि एक ऐसी संस्था का निर्माण हो, जहाँ जैन साधु-साध्वीजी भगवन्त जैनधर्म-दर्शन एवं व्याकरण-न्याय आदि का अध्ययन करें और अपने संयम जीवन से स्व-पर का योगक्षेम हो सकें
पद्मश्री कुमारपालभाई देसाई ने पूज्यश्री के जन्मवर्धापन महोत्सव पर अपने वक्तव्य में कहा कि श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा पूज्यश्री की अमर कृति है, जो जिनशासन के उन्नयन हेतु सदैव अग्रसर है.
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा की आत्मा आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के रूप में पूज्यश्री ने श्रुतज्ञान के विरासतों को संकलित कर संशोधकोंविद्वानों के लिये एक अमूल्य संशोधन केन्द्र प्रदान किया है.
_जैन शिल्प व स्थापत्य कला के अजोड़ पुरातात्विक वस्तुओं का संकलन तो अपने आप में बेमिसाल है. इन्हीं सब बातों को देखते हुए मैं यह कहना चाहूँगा कि कोबातीर्थ में पाँच तीर्थों का संगम हुआ है- धर्मतीर्थ, श्रुततीर्थ, कलातीर्थ, स्वाध्यायतीर्थ और मुमुक्षुतीर्थ. ___ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह ने अपने उद्गार में पूज्यश्री को युगपुरुष के रूप में स्थापित करते हुए कहा कि पूज्य आचार्य भगवन्त का सम्पूर्ण जीवन जिनशासन को समर्पित है. इनके उपकारों का वर्णन करना हमारे लिये दुष्कर ही नहीं, अशक्य कार्य है.
त्रिवेणी महोत्सव में जिनमक्ति के कई कार्यक्रम हुए. जिसमें मुंबई से पधारे बाल-कलाकारों ने भावनृत्य प्रस्तुत कर श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया.
इस मंगलमय अवसर पर देश के विभिन्न भागों से हजारों गुरुभक्तों ने उपस्थित होकर पूज्यश्री के दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन की कामना की एवं उन्हें महान जैनाचार्यों की परम्परा में देदीप्यमान नक्षत्र की तरह बताया.
पूज्यश्री का विशाल शिष्य-प्रशिष्य परिवार जिनशासन के उन्नयन में चार चाँद लगा रहा है. जिनशासन को समर्पित पूज्यश्री का जीवन स्वयं में एक विशाल संस्था का रूप धारण कर चुका है. ऐसे राष्ट्रसन्त पू. गुरुभगवंत को कोटिशः वन्दन कर उनके दीर्घायु व स्वस्थ जीवन की कामना करें.
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