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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर - ३२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // त्रूटक // भावसितं पाली जाण, पामीउं केवलनाण । हुं विषयनइ रसि रत्त, नवि लहिउ एह भवजत्त* !! एह भव न जाणिउ जाअतोनइ ", पांचइ इंद्री भोलविउ । आगइ श्रीजिनधर्म पाखइ, भवअनंता रोलविउ ||२|| हिव हूंअ घरि जई पुत्र राजइ ठवी, चारित्र, लेसिउंअ तिजीअ भोग। श्रीमती भइ तुम्ह साथि अम्हे लेइसिउ, संयम व्रत-तप तणा योग || // त्रुटक // इम योग करिवा भाव, आवीउ निज घरि राउ (त) ! निसि नीं( निं) द्र नावइ सेजि", राणीअ राज हेजि ।। राणीअ राजा मनिहि चिंतइ, किमइ दिनकर ऊगमइ । घर-वास छांडी लिउं चारित्र, माहरइ मनि इम गमइ ||३|| इम करी पुढि रायनई री ( रा ) णीय, पुत्र न जाणइ तेह परि । राजनु लोभीअ निसिभरि आवीय, विषधूम्र कीधउ सूयणघरे ||४| || लूटक ।। विषधूमनु थिउ व्याप, रायइं ते छांडिउ आप। दोइ जणा काल करंति, युगलीआं तिहाथी हुंति ।। युगलीआंथी काल करीनइ, हऊआ सोहम सुरवरा । आठमइ भव श्रीरिषभ जिनवर, थयां भोग भोगीसूरा || ।। ढाला-चंदनबालानु || || नवमउ भव सां[भ]लु ए ।। महाविदेह ए सखी क्षेत्र मझारि, वच्छ विजयधन कनकं भरी ए । प्रभंकरा ए पुरीअच्छ (छ) इ विशाल, केसव वैद्य तिहा कणि हउआ ए । मिलीया एतसु च्यारइ ए मित्र, रायसुत मंत्रीसुत श्रेष्टिपुत्र । चउथु ए सारथपति पुत्र, एकठा मिलइ ते वैद घरे 119 || // त्रूटक || वैदनइ घरि आविआ तव विहरता श्री मुनिवरा । कृमि कोढ सघलूं सइर" व्यापिउं, तोहि ऊषध नवि करा । For Private and Personal Use Only २५
SR No.525282
Book TitleShrutsagar Ank 2013 09 032
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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